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________________ मानव की विराट चेतना शास्त्रों में और नीति ग्रन्थों में मनुष्य जीवन को सर्वश्रेष्ठ और सर्वज्येष्ठ कहा है। इतना ही नहीं, मनुष्य को भगवान ने अपनी वाणी में देवताओं का प्यारा कहा है। विचार होता है, कि मनुष्य जीवन की इस श्रेष्ठता व ज्येष्ठता का मूल आधार क्या है ? सत्ता, महत्ता और वित्तक्या इन भौतिक उपकरणों की विपुलता के आधार पर मनुष्य-जीवन की महिमा वर्णित है ? मैं कहता हूँ नहीं, कदापि नहीं। ऐसा होता तो संसार के इतिहास में रावण, कंस और दुर्योधन मनुष्यों की पंक्ति में सर्व प्रथम गण्य-मान्य होते, परन्तु दुनिया उन्हें मनुष्य न कहकर राक्षस और पिशाच कहती है । उस युग के इन तानाशाहों के पास सत्ता, महत्ता और वित्त की क्या कमी थी ? वित्त और धन-वैभव के उनके पास अम्बार लगे थे। फिर भी वे सच्चे अर्थों में मनुष्य नहीं थे और यही कारण है कि उनका मनुष्य जीवन श्रेष्ठता और ज्येष्ठता की श्रेणी में नहीं आता।। मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता व ज्येष्ठता का मूल आधार है-त्याग, वैराग्य और तपस्या । यदि जीवन में त्याग की चमक, तपस्या की दमक और वैराग्य की समुज्ज्वलता हो तो निःसन्देह वह जोवन अपने आप में एक तेजस्वी और मनस्वी जीवन है । हर इन्सान को अपने अन्दरः झाँककर देखना चाहिए कि उसके हृदय में सहिष्णुता कितनी है ? उसके मानस में सरसता कितनी है ? और उदारता व सन्तोष कितना है ? यदि ये सद्गुण ( २४ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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