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जनतन्त्र दिवस
आज यहाँ पर आचार्यश्री गणेशीलालजी महाराज का पदार्पण हुआ है, यह आपके तथा हमारे लिए परम हर्ष का विषय है । हृदय के इसी उत्साह और उमंग को लेकर आप लोग यहाँ एकत्रित हुए हो । आचार्यश्री की पावन प्रेरणा से उत्प्रेरित होकर भूमिका के रूप में कुछ विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
आज का विषय विचारणीय है । मैंने सूचना पट पर दृष्टिपात किया था, जिस पर लिखा हुआ था - 'जनतन्त्रोत्सव' । शर्माजी तथा गजेन्द्र बाबू ने अभी-अभी आप लोगों के सामने हृतंत्री से राष्ट्रीय गान की तान सुनाकर इस भावना को मूर्तरूप दिया था ।
आज हम सब 'जनतन्त्र दिवस मना' रहे है । किन्तु सर्वप्रथम इस बात का सूक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण-परीक्षण करना है, कि हमारा मन बदला है या नहीं ? हमारी चेतना में उल्लास एवं स्फूर्ति आई है या नहीं ? यह बात किसी और से नहीं, अपने मन से पूछें, अन्तस्तल में पैठ कर देखो कि 'जनतन्त्र दिवस' पर हमारी मानसिक वृत्तियों में कितना परिवर्तन हुआ है ? हमारा मानसिक धरातल बदला है या नहीं ? हमारे जीवन की धारा पहले किस दिशा में प्रवाहित हो रही है ? सर्वतोमुखी विकास करने के लिए हमें आगे किस ओर कदम बढ़ाना है ? 'जनतन्त्र दिवस' पर हमारे ऊपर
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