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आज का प्रजातन्त्र और छात्र जीवन १३६
आप लोग अपने जीवन को मधुर, सुन्दर और सरस बनाने के लिए आत्म-विश्वास, सहिष्णुता और सहयोग की भावना को जागृत कीजिए । आत्म-विश्वास का अभाव भावी जीवन के प्रति चिन्ता उत्पन्न करता है । आज हम जिस युग में सांस ले रहे हैं, वह लोकतन्त्र का युग है, प्रजातन्त्र का युग है । इस युग की सबसे बड़ी देन है आत्म-विश्वास । एकतन्त्रीय युग में हर किसी को बोलने और करने की छूट नहीं थी । मनुष्य को अपने विचार - भले ही वे कितने ही सुन्दर क्यों न हों, अपने मन की कब्र में ही दफनाने पड़ते थे । परन्तु, आज तो हम अपने विचारों का प्रचार भी कर सकते हैं और उनके अनुसार कार्य भी । प्रत्येक व्यक्ति आज अपने जीवन का राजा है, सम्राट है । विकास के साधनों का उपयोग हर कोई कर सकता है । जाति और कुल के बन्धन आज नहीं रहे हैं । आज जाति की पूजा नहीं, मानव की पूजा का युग है । प्रजातन्त्रीय देश के नागरिक होने के नाते, आपके दायित्व आज बढ़ गए हैं। उनका भलीभाँति पालन करने के लिए आप में अटूट और अखूट आत्मविश्वास का बल होना ही चाहिए । दूसरा गुण है, सहिष्णुता । आज जीवन में इसकी बड़ी आवश्यकता है । सहिष्णुता के बिना ज्ञान की साधना नहीं की जा सकती । आप अपने जीवन के बारे में भला-बुरा सोचने में सक्षम हों । जीवन के भव्य प्रवेश द्वार पर पहुँचने के प्रयत्न में हों । यदि इस काल में आप सहिष्णु नहीं बन सके, तो गृहस्थ जीवन के संघर्षों में आप उलझ कर परेशान और हैरान बन जाएँगे । सम्भव है, आशा के हिमगिर से गिर कर पतन के, निराशा के अन्धकूप में भी जा गिरें । ऐसी विषम स्थिति में अपने आप को सम्भाल कर रख सकना, सरल नहीं होगा । अतः सहिष्णुता का गुण एक महान् गुण है । वह जीवन में आपको कर्मठ, क्रियाशील और तेजस्वी बनाए रखेगा ।
तीसरा गुण है, सहयोग | व्यक्ति कभी अपने आप में बन्द नहीं रह सकता । वह एक मूल केन्द्र है, जिसके आस-पास परिवार है, समाज है और राष्ट्र है । आज परिवार, समाज और राष्ट्र का दुःख-सुख उसका अपना दुःख-सुख बनता जा रहा है । समाज का संकट आज व्यक्ति का संकट है, समाज की समस्या आज व्यक्ति की समस्या है। युग के साथ कदम बढ़ाकर चलना आज के युग का नया नारा नहीं है । वेद में कहा है — " संगच्छध्वं ” — कदम मिलाकर साथ चलो । जैन संस्कृति में इस
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