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अमर-भारतो
भावना को 'सहधर्मिवत्सलता' कहा गया है। आज के युग में इस भावना को सह-अस्तित्व, सहकार और सहयोग कहते हैं । आप एक दूसरे के साथ सहयोग की भावना रखकर चलें ।
मैं आज अपने आपको आपके मध्य में पाकर परम प्रसन्न हूँ । मैं भी कभी आपके ही समान छात्र था और सत्य तो यह है कि में आज भी अपने आपको एक विद्यार्थी ही समझता हूँ । सम्पूर्ण जीवन ही ज्ञान की साधना के लिए प्रस्तुत रहना चाहिए। ज्ञान की प्यास बुझी कि मनुष्य का विकास रुका | नया ज्ञान, नया विचार और नया चिन्तन सदा होते ही रहना चाहिए । जो स्थिति आज हमारे सामने है, उसके आधार पर मैं स्पष्ट कह सकता हूँ कि एक परिवर्तन अवश्य हो रहा है । युग बदल गया है । वह समय अब दूर नहीं रहा, जिसमें एक सुन्दर मानव समाज का निर्माण होगा । उस समाज में जाति, कुल और धन की नहीं, व्यक्ति के सद्गुणों की सत्ता और महत्ता स्वीकार होगी ।
अन्त में, मैं आपसे यही कहूँगा कि आप जो भी कार्य करें एक रस, समरस होकर करें, उसमें अपने मन के सरस और कोमल भावों को उड़ेलते रहें । सफलता फिर आप से दूर नहीं रहेगी। मुझे प्रसन्नता है कि मैं यहाँ हरसोरा में आया और एक सप्ताह आप के स्कूल में रहकर अब आगे की यात्रा के लिए चल पड़ा हूँ। मैं आपके जीवन की मधुर संस्कृति लेकर जा रहा हूँ । आप स्वतन्त्र भारत के योग्य नागरिक बनें, यही मेरी मंगल भावना है |
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