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जीवन : एक कला
अनादि काल से मानव जीवन में कला का विशेष स्थान रहा है। कला की एक निश्चित परिभाषा-भले ही अभी तक न हो सकी हो-परंतु जीवन को सुन्दर, मधुर और सरस बनाने की चेष्टा का जबसे सूत्रपात हुआ है, तबसे कला भी जीवन के भव्य भवन में जाने-अनजाने आ पहुँची है। कला का अर्थ भोग-विलास के साधन करना-एक भ्रान्त धारणा ही नहीं, अपितु कला के यथार्थ परिबोध की नासमझी भी है। कला, जीवन-शोधन की एक प्रक्रिया है । कला, जीवन-विकास का एक प्रयोग है। कला, जीवन यापन की एक पद्धति है, एक शैली है । भोग-विलास के उपकरणों व प्रसाधनों के अर्थ में कला शब्द का प्रयोग करना, यह कला की विकृति है, संस्कृति नहीं। अधिक स्पष्ट कहूँ, तो कहना होगा, कि यह कला शब्द की विसंगति है, संगति नहीं।
____ भारतीय संस्कृति के महामनीषी ऋषि भर्तृहरि ने कहा है-"जिस जीवन में साहित्य की उपासना नहीं, संगीत की साधना नहीं, कला की आराधना नहीं, वह जीवन मानव का नहीं, पशु का जीवन है
"साहित्य-संगीत-कला-विहीनः,
___ साक्षात् पशुः पुच्छ-विषाण-हीनः ॥" पशुत्व भाव से संरक्षण के लिए, जीवन में कला आवश्यक तत्व है।
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