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________________ सामाजिक व्यवस्था गृहस्थ धर्म के दान, शील, पूजा एवं पर्व के दिन उपवास कृत्यों का वर्णन है । इसी मन्तव्य को पद्म पुराण में अन्य शब्दों में उद्धृत किया गया है- प्रयत्नपूर्वक सामयिक करना, प्रोषधोपवास धारण करना, अतिथिसंविभाग और आयु का क्षय उपस्थित होने पर सल्लेखना धारण करना-- - ( धार्मिक मृत्यु ) -- ये चार शिक्षा व्रत हैं । ' ૨ पद्म पुराण और महा पुराण में दिग्विरति, देशविरति एवं अनर्थदण्डविरति ये तीन गुणव्रत हैं । कोई विद्वान् भोगोपभोग परिमाणव्रत को भी गुणव्रत कहते हैं और देशव्रत को शिक्षाव्रत में सम्मिलित करते हैं । हरिवंश पुराण में दिशा, देश और अनर्थदण्डों से विरत होने को गुणव्रत कहते हैं । महा पुराण में वर्णित है कि जिनेन्द्र देव ने गृहस्थों के लिए ग्यारह स्थान ( प्रतिमाएँ) बतलायी है : दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्तत्याग, दिवामैथुनत्याग, ब्रह्मचर्य, आरम्भत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग | जैन पुराणों में अहिंसा पर बल दिया गया है, इसी लिए व्रती लोग हरे अंकुरों में जीव होने के कारण उनके वध की आशंका से हरे अंकुरों पर नहीं चलते हैं।" महा पुराण में गृहस्थों द्वारा असि, मषि आदि षड्कर्म करने पर हिंसा के दोष का प्रश्न उठाया है । यह मनुष्य उत्तमोत्तम भोग करता है और बाद में मुनिदीक्षा धारण कर मोक्ष प्राप्त करता था । " महा पुराण में सद्गृहस्थ को विशुद्ध आचरण के साथ षड्कर्म करने का विधान है । जैन पुराणों में गृहस्थों के बारह व्रतों का वर्णन प्राप्य है- पाँच अणुव्रत, चार शिक्षाव्रत, तीन गुणव्रत, इसके अतिरिक्त यथाशक्ति हजारों नियम धारण करने १. २. ३. महा १०।१६५; पद्म १४/१६८ ४. हरिवंश १८ ।४६ महा ४१।१०४; हरिवंश 9015 पद्म १४ । १६६ ८. ५. ६. वही ३८।१७ -१६ ७. पद्म ६ । २६६ वही ६।२६८ महा ३६ । ६६ cis महा १०1१५६-१६० ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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