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________________ ४८ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन हेय दृष्टि से देखा जाना कम हो गया था । कुछ तांत्रिक आचार्य स्वयं शूद्र थे।' [य] दास-प्रथा : प्राचीन विश्व की संस्कृतियों में दासों की स्थिति के संदर्भ में प्रायः उनकी दयनीय स्थिति की ही सूचना उपलब्ध है। मिस्री, सुमेरियन तथा यूनानी सभ्यताओं में इनके कटुतापूर्ण जीवन के साक्ष्य प्राप्त होते हैं । भारतीय संस्कृति के आदितम ग्रन्थ ऋग्वेद के वर्णनानुसार आर्य अपने विरोधी जाति को दास कहते थे। तैत्तिरीय संहिता (२।२।६।३), बृहदारण्योपनिषद् (४।४।२३), छान्दोग्योपनिषद् (७।२४।२), अर्थशास्त्र (३।१३), आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।४।६।११), जैमिनी (६।७।६), मनुस्मृति (१०६१), महाभारत (२३३।४३) आदि प्राचीन ग्रन्थों में दासों का उल्लेख मिलता है। जैन पुराणों के रचना-काल में गृहपरिचारक अथवा गृहपरिचारिका दासों की ही कोटि में परिगणित किये जाते थे। कहीं तो इनमें दास-दासी' अथवा घटदासी का स्पष्ट उल्लेख हुआ है और कहीं इन्हें धाय', दूती तथा परिचारिका' शब्द से भी अभिहित किया गया है। जैसाकि लुडविग स्टनवारव का कथन है कि इस समयावधि में गृहपरिचारक भी दासों की भाँति अस्वाधीन स्थिति में विद्यमान थे। मनु ने सात प्रकार के दासों का वर्णन किया है-युद्ध में बन्दी बनाया गया १. कैलाशचन्द्र-वही, पृ० ४; दशरथ शर्मा-राजस्थान यू द ऐज़ ज़, पृ० ४३५ २. इन्साइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइन्सेज, भाग १४ पृ० ७४, द्रष्टव्य, पी०वी० काणे-हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र, भाग २, खण्ड १, पृ० १८० ब्रस्टेड-कन्क्वेस्ट ऑफ सिविलीजेशन, लन्दन, १६३४, पृ० ६१५ ३. ऋग्वेद ८।१६।३६, ८१५६।३ ४. हरिवंश ४३।२; महा २०१५६ ५. वही, ८.५२ ६. वही ३३।४७-५० ७. पद्म ६।३८१-४२२; महा १४।१६५, ४३।३३ ८. हरिवंश ४३।२३; महा ७५।४६४-४६५ ६. महा १६।११४-१२५ १०. लुडविग स्टनवारव-जुरिडिकल स्टडीज इन ऐंशेण्ट इण्डियन ला, दिल्ली, १६६५, पृ० ४७१ तथा आगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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