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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन सामान्यतया ब्राह्मणों के प्रति अवहेलना प्रदर्शित की गयी है । किन्तु पौराणिक वाङ्मय ने स्वभावतः समाज के सर्वांगीण स्वरूप का परिचय प्रस्तुत किया है । इसी लिए इस वाङ्मय के विशिष्ट ग्रन्थ महा पुराण में द्विजों की श्रेष्ठता को प्रकाश में लाते हुए उनके गौरवान्वित पद का प्रधान आधार ज्ञान माना है । प्रस्तुत ग्रन्थ में ब्राह्मण के लिए संस्कार, तपश्चरण तथा शास्त्राभ्यास को अनिवार्य माना गया है और यह कथित है कि तपश्चरण और शास्त्राभ्यास से जिनका संस्कार नहीं हुआ है, वे जाति मात्र से भले ही द्विज हों, वस्तुतः द्विज कहलाने के अधिकारी नहीं हैं । ब्राह्मणों को वर्णोत्तम मानना जैन सम्प्रदाय को भी मान्य है । इसका समर्थन महापुराण के एक अन्य प्रसंग से होता है । व्रत, मंत्र, संस्कार, क्षमा और शौच में तत्पर रहने वाले तथा संतोष एवं निर्दोष आचरणधारी द्विज व्यक्ति को सभी वर्णों में श्रेष्ठ कहा गया है । " ४० महा पुराण में वर्णित है कि श्रुति, स्मृति, पुराण, सदाचार, मंत्र, क्रियाओं के आश्रित और देवताओं के चिह्न यज्ञोपवीत के धारण करने तथा काम का विनाश करने से द्विजों की शुद्धी होती थी।" इसके अतिरिक्त यह भी वर्णित है कि ब्राह्मण सभी वर्णों में श्रेष्ठ होने के कारण वह स्वतः दूसरों को शुद्ध करता था । इसी पुराण में ब्राह्मणों के दस अधिकारों का उल्लेख भी उपलब्ध है- अतिबाल विद्या, कुलावधि, वर्णोत्तमत्व, पात्रत्व, सृष्ट्यधिकारिता, व्यवहारेशिता, अवध्यत्व, अदण्ड्यता, मानार्हता तथा प्रजा सम्बन्धान्तर । १. जगदीश चन्द्र जैन — जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, वाराणसी, १६६५, पृ० २२४-२२५ महा ३६।१३० ततः श्रुताभ्यामेवाती जातिसंस्कार इष्यते । असंस्कृतस्तु यस्ताभ्यां जातिमात्रेण स द्विजः । महा ३८|४७ २. ४. ५. श्रुतस्मृतपुरावृत्तमन्त्र क्रियाश्रिता । देवतालिङ्गकामान्तकृता शुद्धिर्द्विजन्मनाम् ॥ महा ३६ । १३६ महा ३६ । १३१ - १३२; तुलनीय, सूत्रकृतांग ६ । १ ६. वर्णोत्तमत्वं वर्णेषु प्राप्नोत्यसंशयम् ॥ महा ४०1१८२ - १८४ तुलनीय, तैत्तिरीय ब्राह्मण ३ ७ ३; महाभारत शान्ति ३४३।१३-१४, ६०।७- १२; वशिष्ठ ३०।२ - ५; मनुस्मृति ४।११७ महा ४०।१७५-१७६ ७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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