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________________ ३७४ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन और धर्म का माहात्म्य सोचना-ये बारह अनुप्रेक्षा (भावनाएँ) कही गयी हैं, इन्हें सदा हृदय में धारण करना चाहिये ।' (8) चारित्न : जैन आगम में चारित्न के अन्तर्गत पाँच महाव्रत, पाँच समिति तथा तीन गुप्ति मिलकर कुल तेरह होते हैं । परन्तु जैन पुराणों में केवल पाँच का ही उल्लेख उपलब्ध होता है। चारित्न के सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय तथा यथाख्यात--ये पाँच प्रकार के भेद हैं। (१) सब पदार्थों में समताभाव रखना तथा सब प्रकार के सावद्ययोग का पूर्ण त्याग करना सामायिक चारित्र है। (२) अपने प्रमाद के द्वारा किये हुए अनर्थ का सम्बन्ध दूर करने के लिए जो समीचीन प्रतिक्रिया होती है, छेदोपस्थापना चारित्र है । (३) जिसमें जीव हिंसा के परिहार से विशिष्ट-शुद्धि होती है वह परिहारविशुद्धि चारित्न का बोधक है। (४) सम्पराय कषाय को कहते हैं, ये कषाय जिसमें अत्यन्त सूक्ष्म रह जाती है वह पाप को दूर करने वाला सूक्ष्म साम्पराय चारित्र कहलाता है। (५) जहाँ समस्त मोह कर्म का उपशम (क्षय) हो चुकता है उसे यथाख्यात (अथाख्यात) को चारित्र संज्ञा से सम्बोधित करते हैं।' (१०) कषाय : पद्म पुराण में वर्णित है कि क्रोध, मान, माया और लोभये चार कषाय महा शन्नु हैं, इन्हीं के द्वारा जीव संसार में परिभ्रमण करता है। [v] मुनि-संघ : सम उपसर्ग पूर्वक 'हन्' धातु से 'अ' प्रत्यय होकर हन् को 'घ' आदेश होकर संघ शब्द की उत्पत्ति हुई है। संघ का अर्थ समूह है। प्राचीन भारत में जैन श्रमणों का संघ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और अद्वितीय संगठन था । वस्तुतः समस्त भारत के इतिहास में बौद्ध धर्म के उदय से भी पूर्व जैन संघ का संगठित संघ था। जैन संघ चार भागों में विभक्त था-श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका।' जैन पुराणों के परिशीलन से यह ज्ञात होता है कि उस समय 'मुनि-संघ' हुआ करते थे, जिसमें मुनिगण निवास करते थे। इनकी संख्या एवं व्यवस्था के १. पद्म १४।२३७-२३६ २. द्रव्यसंग्रह मूल ४५ ३. हरिवंश ६४।१५-१६ पद्म ६२१६; महा २११६८ ४. पद्म १४।११० ५. जगदीश चन्द्र जैन-जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, वाराणसी १६६५, पृ० ३८६ ६. हरिवंश १२१६, २०१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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