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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन (१) पुदगल : महा पुराण में वर्णित है कि पंचेन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय के द्वारा जिसका यथार्थ ज्ञान हो उसे मूर्तिक संज्ञा प्रदत्त है। पुद्गल के अतिरिक्त अन्य किसी पदार्थ का इन्द्रियों के द्वारा स्पष्ट ज्ञान नहीं होता, इसलिए पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है और शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं। इसमें वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श का अनुभव होने के कारण इसका नामकरण पुद्गल हुआ है । पूरण (अन्य परमाणुओं का आकर मिलना) और गलन (पूर्व के परमाणुओं का बिछुड़ जाना) स्वभाव होने से पुद्गल नाम सार्थक है। इसके दो भेद हैं-परमाणु और स्कन्ध (स्थूल): (i) परमाणु : किसी वस्तु के सर्वाधिक लघु एवं अविभाज्य कण को परमाणु कहते हैं। अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण इन्द्रियों द्वारा इनका ज्ञान नहीं होता है । इस प्रकार के परमाणु नित्य और गोल होते हैं तथा पर्यायों की अपेक्षा अनित्य भी होते हैं। हरिवंश पुराण में विवेचित है कि जो आदि, मध्य एवं अन्त से रहित, अखण्डनीय, अतीन्द्रिय, मूर्त होने पर भी अप्रदेश-अद्वितीयक प्रदेशों से रहित हैं, उसे परमाणु संज्ञा से अभिहित करते हैं। इसी पुराण में उल्लेख आया है कि परमाणु एक काल में एक रस, एक वर्ण, एक गन्ध, परस्पर बाधित न होने के कारण दो स्पर्शों को धारण करता है, अभेद्य है, शब्द का कारण है और स्वयं शब्द से रहित है। परमाणु । के छः भेद हैं-सूक्ष्मसूक्ष्म (स्कन्ध से पृथक् रहने वाला), सूक्ष्म (कर्मों के स्कन्ध), सूक्ष्मस्थूल (शब्द, स्पर्श, रस तथा गन्ध); स्थूलसूक्ष्म (छाया चाँदनी आतप आदि), स्थूल (पानी आदि तरल पदार्थ) और स्थूलस्थूल (पृथ्वी आदि)। (ii) स्कन्ध : स्निग्ध और रुक्ष अणुओं के समुदाय को स्कन्ध कथित है। पुद्गल द्रव्य का प्रसार दो परमाणु वाले द्वयणुक स्कन्ध से अनन्तानन्त परमाणुक महास्कन्ध तक होता है। छाया, आतप, अन्धकार, चाँदनी आदि इसके विभिन्न पर्याय हैं। १. महा २४।१४४ २. वही २४।१४५; हरिवंश ५८१५५-५६ ३. वही २४।१४६; वही ५८।५५-५६ ४. वही २४।१४८ ५. हरिवंश ७।३२ ६. वही ७।३३; तुलनीय-उत्तराध्ययन २८।१२, ३६।११-१५; तत्त्वार्थसूत्र ५।११ ७. महा २४।१४६-१५३ ८. वही २४।१४६-१४७; हरिवंश ५८।५५-५६, ७।३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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