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साक्ष्य - अनुशीलन
तदुपरान्त गुरु परम्परा से यह चला आ रहा है। इस प्रकार इस पुराण के मूल कर्ता महावीर और अन्तिम कर्त्ता गौतम गणधर हैं ।
जैन पुराणों में 'पुराण' के दो भेद हैं :- 'पुराण' और 'महापुराण' । जिसमें एक पुरुष के चरित्र का वर्णन हो, उसे 'पुराण' कहते हैं और जिनमें तिरसठ शलाकापुरुषों के चरित्र का वर्णन हो, उसे 'महापुराण' कहते हैं ।' महापुराण में af है कि ये पुराण आचार्यों द्वारा प्रणीत होने से प्रमाणभूत हैं ।"
[ख] इतिवृत्त एवं इतिहास शब्द का परिशीलन
वैदिक ग्रन्थों में 'इतिहास' और 'पुराण' शब्द साथ-साथ इतिहास - वेद तथा पुराण- वेद के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, परन्तु वहाँ पर इतिहास का अर्थ स्पष्ट नहीं है । विण्टरनित्ज के मतानुसार इतिहास - वेद की पृथक् से पुस्तक नहीं थी, अपितु ये अध्ययन के साधन थे । " छान्दोग्योपनिषद् में स्पष्टतः वर्णित है कि यद्यपि इतिहास और पुराण पृथक्तः अस्तित्व नहीं रखते थे, परन्तु अपने गुण के कारण इन्हें पाँचवाँ वेद कहते हैं ।' उत्तर वैदिक काल में इतिहास और पुराण स्पष्ट रूप में प्रकाश में आये । पौराणिक एवं अपौराणिक साक्ष्यों के अध्ययनोपरान्त पं० बलदेव उपाध्याय इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इतिहास और पुराण का अन्तर परवर्ती काल में मिलता है ।"
डॉ० पुसाल्कर का मत है कि उत्तर वैदिक काल में पुराण की अपेक्षा इतिहास का स्थान ऊँचा था और दोनों उस समय बहुत लोकप्रिय थे । " छान्दोग्योपनिषद् में
१. महा १।१६६-२००
२ . वही १।२०१
३. वही १।२२-२३ पाण्डव, पृ०
४. पुराणमृषिभिः प्रोक्तं प्रमाणं सूक्तमासम् । महा १।२०४
५. विण्टरनित्ज - हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, भाग १, पृ० ३१३
६. छान्दोग्योपनिषद् ७ १/२
३
७. बलदेव उपाध्याय - पुराण- विमर्श, वाराणासी, १६६५, पृ० ६
८.
ए० डी० पुसाल्कर - स्टडीज़ इन् द एपिक्स एण्ड पुराणाज़, बम्बई, १६५५,
पृ० ४४-४५
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