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________________ ललित कला २८३ भी प्राप्य है । जैन सूत्रों में संगीत को बहत्तर कलाओं में स्थान प्राप्त है तो वह महिलाओं के चौसठ गुणों में एक गुण के रूप में विद्यमान है । जैन ग्रन्थों के अनुसार संगीत में इन तीन तत्त्वों-गीत, संगीत और नृत्य-का समावेश हुआ है । जैनेतर ग्रन्थों में भी संगीत का यही तात्पर्य है। समाज में अत्यधिक प्रचार-प्रसार के कारण संगीत मनोरंजन का प्रधान अंग बन चुका था । यही कारण है कि जैन भिक्षुओं को विलासिता से मुक्तार्थ संगीत निषेधित था। समाज में जनता के मनोरंजन के अन्यान्य साधनों के साथ ही गायन, वादन एवं नृत्य का भी आयोजन होता था। जैन आगमों में तीर्थंकर के जन्मदिन, जिनत्व की प्राप्ति, पुत्र-जन्मोत्सव पर संगीत के आयोजन का उल्लेख मिलता है। ___ संगीत-कला के अनुशीलन से इसके गुणों की ओर ध्यान आकर्षित होना स्वाभाविक है। मन्मथ राय ने संगीत के आठ गुण निरूपित किये हैं : स्वर कला से परिपूर्ण, रक्त (पवित्र), अलंकृत, व्यक्त, अविघुट्ट (सुरीला), मधुर, सम और सुकुमार ।" देवताओं के नाम से सम्बद्ध कर संगीत को लोक-प्रिय बनाने के उद्देश्य से इसे धर्म से सम्बन्धित कर दिया गया है । आलोचित हरिवंश पुराण में किन्नर, गन्धर्व, तुम्बुरु, नारद तथा विश्वावसु को संगीत के देवता के रूप में मान्यता प्राप्त थी । १. संगीत-कला के सिद्धान्त : स्वरूप एवं प्रकार : ललित-कला में संगीत-कला का महत्त्वपूर्ण स्थान है । संगीत कला के सिद्धान्त के ज्ञानाभाव में उसकी १. ज्ञाताधर्मकथासूत्र, पृ० ६८ २. कल्पसूत्र, पृ० २०३ । ३. आचारांगसूत्र २।११।१८; सूत्रकृतांग २।२।५५; ज्ञाताधर्मकथासूत्र, पृ० ४०१; भगवती सूत्र १५।११४ ४. गीतं वाद्य च नृत्यं च त्रयं संगीत मुच्यते । के० वासुदेव शास्त्री-संगीतशास्त्र, पृ० १; महाभारत, आदिपर्व ७६।२४ ५. आचारांग सूत्र २।११।१४ ६. वही २।११।१-८ ७. कल्पसूत्र, पृ० २५३ ८. वही, पृ० २६५ ६. वही, पृ० २५४ १०. मन्मथ राय-प्राचीन भारतीय मनोरञ्जन, इलाहाबाद, सं० २०१३, पृ० १०६ ११. हरिवंश ८।१५८; पद्म ३११७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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