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ललित कला
[क] संगीत-कला
प्राचीन काल से संगीत-कला का किसी न किसी रूप में मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । संगीत के माध्यम से मनुष्य अपने सुख-दुःख के भावों को भी प्रकट करता है, जिससे उसको एक प्रकार की मानसिक शान्ति उपलब्ध होती है एवं उसका मनोरंजन भी होता है । हरिवंश पुराण में वर्णित है कि नृत्य, संगीत एवं वादिन द्वारा मनुष्य अपना मनोरंजन कर स्फूर्ति का अनुभव करता है । महा पुराण में संगीत, वादिन तथा नृत्य-गोष्ठियों के आयोजन का उल्लेख उपलब्ध है । उक्त पुराण में अन्य-गोष्ठियों के अतिरिक्त काव्य-गोष्ठी' में गायन की प्रधानता का वर्णन १. चित्तैश्चित्तहरैदिव्यर्मानुषैश्च समन्ततः । ___ नृत्यसङ्गीतवादिनभूतलैऽपि प्रभूयते ॥ हरिवंश ५६।२० २. कदाचित्गीतगोष्ठीभिर्वाद्यगोष्ठीभिरन्यदा ।
कहिचिन्नृत्यगोष्ठीभिदेयस्तापर्यमुपासत् ॥ महा १२।१८८ ३. महा १२।२१२
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