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________________ २७० जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन महा पुराण' और पद्म पुराण में जिन प्रतिमा को चैत्य संज्ञा से सम्बोधित किया गया है; जो कृत्रिम और अकृत्रिम हुआ करती थीं। जैन पुराणों में चैत्य को चैत्यालय भी कथित है।' पद्म पुराण में चैत्यालय को महापवित्र बताया गया है। वस्तुतः जिनेन्द्रालय का बृहताकार ही चैत्यालय है ।" महा पुराण के वर्णनानुसार जैन मन्दिर चैत्यवृक्ष के समीप होने के कारण इन्हें चैत्य नाम प्रदान किया गया है । पद्म पुराण में जिनेन्द्रालय के स्थान पर 'जिनवेश्म' शब्द भी व्यवहृत हुआ है। प्रभाशंकर ओ० सोमपुरा के मतानुसार देवों के समूह को 'मन्दिर' और देवकुलिकाओं के समूह को 'आयतन' कहा गया है । विष्णु, शिव, चण्डी और सूर्य का पंचायतन होता है। इसी प्रकार चौबीस अवतार का विष्णु चतुर्विंशति आयतन हुआ । जैन तीर्थ का चौबीस आयतन का द्वीस-तायतन हुआ । जैनों में भी इस प्रकार के आयतन होते हैं। __पद्म पुराण में प्रत्येक पर्वत, गाँव, पत्तन, महल, नगर, संगम तथा चौराहे पर जैन मन्दिर के निर्माण का उल्लेख उपलब्ध होता है। जैन पुराणों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि जैन मन्दिरों का निर्माण राजाओं एवं सेठों तथा समाज के धनी-मानी व्यक्तियों द्वारा कराया जाता है । डॉ० द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल के विचारानुसार ये मन्दिर नगर की शिक्षा-दीक्षा, धर्म-दर्शन, अध्यात्म-चिन्तन, योग एवं वैराग्य के सजीव केन्द्र होते थे। [ii] निर्माण कला एवं विशेषताएं : जैन मन्दिर को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-घर-देरासर या गृह-मन्दिर और पाषाण या काष्ठ से निर्मित मन्दिर । घर-देरासर गुजराती जैन समाज की एक अपनी विशेषता है और ऐसा मन्दिर प्रायः प्रत्येक घर में होता है, चाहे उसके साधन सीमित ही क्यों न हों। गुजरात और दक्षिण भारत में हिन्दू घरों में भी गृह-मन्दिर होते हैं, परन्तु जैन देरासरों की अपनी पृथक विशेषताएँ हैं। पाषाण या काष्ठ निर्मित मन्दिरों की यथार्थ १. महा ५।१६१ ८. प्रभाशंकर ओ० सोमपुरा-वही, २. कृत्रिमाकृतिमान्यस्मिंश्चत्यानभ्यर्च्य पृ० २०७ विष्टये । पद्म ६८१५६ ६. पद्म ६७।१४-१५ ३. पद्म ३।४५; महा ८।२३५ १०. सौजन्यदा नृपतौ चैत्यगृहनिर्माण४. पद्म ६८।५८ णोद्यते । महा ८।२३५; पद्म ५. वही ७।३३८, ३३।३३२ ६७।११ ६. महा ६.५६ ११. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल-भारतीय ७. पद्म २८।१०० स्थापत्य,लखनऊ, १६६८, पृ०६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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