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________________ कला और स्थापत्य २६६ (१५) प्रपा (प्याऊ) : प्र उपसर्गपूर्वक पा धातु से अप्रत्यय होकर स्त्रीत्वविवक्षा में टाप प्रत्यय होने पर प्रपा शब्द निर्मित हुआ है। पानी पिलाने के स्थान को प्रपा कहते है । प्रपा का निर्माण नगरों', उद्यानों, मन्दिरों एवं मार्गों पर किया जाता था। मार्गों के प्रपा के ऊपर वृक्षों की छाया पड़ने से इनका जल सब रसों से समन्वित होता है । यह एक कमरे का होता था। ३. मन्दिर निर्माण-कला [i] जैनमन्दिर : विश्लेषण : 'मंद्' धातु में इर् प्रत्यय होकर मन्दिर शब्द की उत्पत्ति हुई । कल्याण के साधनीय स्थान का बोधक मन्दिर है । संस्कृति के दो शब्द 'मन्दिर' और 'आलय' सामान्यतः किसी छायावान् वास्तु का बोध कराते हैं, किन्तु उनका एक अर्थ-विशेष रूप से जैनधर्म के सन्दर्भ में-देवालय भी है । परन्तु इन दोनों शब्दों से भी प्राचीन शब्द 'आयतन' है जिसका अस्तित्व महावीर के समय में भी था, क्योंकि वे अपने विहारों के समय यक्षायतनों में ठहरा करते थे। बाद में आयतन शब्द का प्रयोग जिनायतन शब्द के अन्तर्गत होने लगा और इसके उपरान्त भी मन्दिर, चैत्य, आलय, वसति, वेश्म, विहार, भुवन, प्रासाद, गेह, गृह आदि शब्दों ने उसका स्थान ग्रहण कर लिया। पद्म पुराण में भी एक ही शान्ति-जिनालय के लिए शान्तिभवन, शान्तिगेह, शान्त्यालय, शान्तिहर्म्य, शान्तिसद्य आदि संज्ञाओं के प्रयोग का उल्लेख हुआ है जो एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं तथा निर्माण में एक दूसरे से समानता रखते हैं। महा पुराण में जैन मन्दिर के लिए 'सिद्धायतन' शब्द प्रयुक्त हुआ है। जैनेतर ग्रन्थ अमरकोश में आयतन और चैत्य शब्दों का एक ही अर्थ कथित है। जैन आगम ग्रन्थों में चैत्य शब्द का प्रयोग देव मन्दिर के लिए हुआ है।" १. पद्म ३८।६३ ७. पद्म ७१।३३-४६ २. वही ४६।१५२ ८. महा ४१६४ ३. वही ६८।११ ६. 'चैत्यमायतन' तुल्ये । अमरकोश ४. वही ३।३२५ २।२।७ ५. प्रपा महातरुकृतच्छायाः प्रपाः १०. प्रभाशंकर ओ० सोमपुरा-भारतीय सर्वरसान्विताः । पद्म ३।३६ शिल्पसंहिता, बम्बई, १६७५, अमलानन्द घोष-जैन कला और पृ० २०६ __स्थापत्य, भाग ३, नई दिल्ली, १६७५, पृ० १६१, ५१५-५१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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