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शिक्षा और साहित्य
२४३ १२. वास्तु एवं स्थापत्य कला : इस विषय से सम्बन्धित ग्रन्थ का निर्माण किया गया था, जिससे मूर्तियाँ एवं मकान आदि के निर्माण में सुविधा रहती थी।
१३. नाटक : गीत, नृत्य एवं वादिन का एक साथ होना नाट्य कहलाता है। महा पुराण में वर्णित है कि किसी के द्वारा किये हुए कार्य का अनुकरण करना नाटक है।' उक्त पुराणानुसार नाटक से धर्म, अर्थ एवं काम इन तीन पुरुषार्थों की सिद्धि तथा परमानन्द रूप मोक्ष की प्राप्ति होती है। जैन पुराणों में नाटक के पात्रों में नट, नटी, नर्तकियाँ, भाण आदि होते थे । महा पुराण में नाटक को इन्द्र से उद्भूत माना गया है और सर्वप्रथम गर्भावतार एवं मंगलावतार नाटक इन्द्र द्वारा प्रस्तुत किया गया था। नाटक करने, उसमें प्रयुक्त सामान, खेलने का ढंग, प्रेक्षागृह, संगीत, रंग-भूमि, गीत आदि का वर्णन उक्त पुराण में मिलता है :
१४. कथा साहित्य : प्राचीनकाल से कथा-प्रचलित है। पद्म पुराण में कथाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है । कथाओं से लोग आनन्द लेते थे । सत्पुरुषों की कथा का विशेष महत्त्व था और इसे मान्यता भी प्राप्त थी।' चार प्रकार की कथाओं का उल्लेख पद्म पुराण में मिलता है : ११
(i) आक्षेपणी कथा : इसमें अन्य मतों की आलोचना होती है। (ii) निक्षेपणी कथा : इसमें तत्त्व का निरूपण होता है। (iii) सेवेजनी कथा : इसमें सांसारिक बातों की चर्चा होती है।
(iv) निवेदनी कथा : इसमें भोगों से विरक्ति उत्पादक एवं पुण्य-वर्द्धक कथाएँ हैं।
१५. चिकित्साशास्त्र : पुराणों से चिकित्साशास्त्र पर प्रकाश पड़ता है। हमारे यहाँ की चिकित्सा अत्यधिक उन्नत अवस्था में थी । इसमें काय चिकित्सा आदि आठ प्रकार के आयुर्वेद तथा प्राणायाम आदि के विभाग और उनकी पृथ्वी आदि धारणाओं का वर्णन है ।१२ आलोच्य पुराणों में रोग और उनके निदान का उल्लेख मिलता है । पद्म पुराण में उरोधात (वक्षस्थल एवं पसली दर्द), महादाहज्वर १ महा १६।१२२
७. महा १४।१०३ २. पद्म २४।२२
८. वही १४११०५-११५, ३५।१६१ ३. महा १४६६
६. पद्म ११।१५ ४. वही १४११०१
१०. वही ११२३-३५ ५. पद्म ८०५८; महा ७५१४६६ ११. वही १०६।६२-६३ ६. महा १४६६
१२. हरिवंश १०।११६
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