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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन . (iii) अलंकारशास्त्र : अलंकारशास्त्र के अन्तर्गत शब्दालंकार और अर्थालंकार के साथ ही दस गुण भी होते थे।' प्रसन्नादि, प्रसन्नान्त, मध्यप्रसाद एवं प्रसन्नाद्यवसान-ये चार स्थायी पद के अलंकार; निर्वृत्त, प्रस्थित, विन्दु, प्रेङ्खोलित, तारमन्द्र एवं प्रसन्न-ये छ: संचारीपद के अलंकार तथा आरोही पद के प्रसन्नादि एक अलंकार तथा अवरोही पद के प्रजन्नान्त एवं कुहार दो अलंकार थे । ये तेरह अलंकार संगीत के लिए बहुत ही उत्तम थे। अन्य अलंकारों में व्याजस्तुति, श्लेषोपमा, गूढ़चतुर्थम्, निरोष्ठ्यम् अलंकारों का उल्लेख मिलता है।'
६. पहेली : उस समय पहेली करना एवं समझना एक बहुत बड़ी कला थी। इसी लिए आलोचित महा पुराण में निम्नांकित पहेलियों का उल्लेख मिलता है। अन्तर्लापिका, एकालपक, वहिापिका, क्रियागोपिता, प्रश्न, स्पष्टान्धक, बिन्दुमान, विन्दुच्युतक, मानाच्युतकप्रश्न, व्यञ्जनच्युतक, अक्षरच्युतक प्रश्नोत्तर, एकाक्षरच्युतकपाद, निह्न तैकालापक, आदिविषममन्तरालापक प्रश्नोत्तर, वहिरालापकमन्तविषय प्रश्नोत्तर आदि पहेलियाँ थीं।'
७. गणित : उस समय गणित का अत्यधिक प्रचार-प्रसार था। पद्म पुराण में गणितार्थ 'सांख्यिकी' शब्द व्यवहृत हुआ है।" उस समय गणित और सांख्यिकी समानार्थी थे।
८. अर्थशास्त्र : कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सदृश्य जैनियों ने भी अर्थशास्त्र की रचना की थी। अर्थशास्त्र की अत्यधिक महत्ता थी।
६. कामशास्त्र : काम विषयक शास्त्र का निर्माण किया गया था। इसमें लालित्य की प्रधानता थी।"
१०. गान्धर्वशास्त्र : संगीतशास्त्र से सम्बन्धित गान्धर्व-शास्त्र की रचना हुई थी जिसमें एक सौ से अधिक अध्याय थे। परन्तु यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है। इसमें सगीत के सिद्धान्त आदि प्रतिपादित थे।
११. चित्रकला : उस समय निर्मित चित्रकला शास्त्र में एक सौ से अधिक अध्याय थे। परन्तु यह भी ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं है। १. महा १६।११५
६. महा १६।११६ २. पद्म २४।१६-१६
७. पद्म १२३।१८६; महा १६।१२३ . ३. महा १२।२१३-२१८
_____८. . महा १६।१२० ४. वही १२।२१८-२५५
६. वही १६।१२१ ५. पद्म ५।११४; महा १६।१०८
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