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________________ २२० जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन से स्नेहपूर्वक याचना करने का उल्लेख उपलब्ध होता है । समय एवं परिस्थिति के अनुसार इनकी मात्रा कम और अधिक होती थी । राजा भूमि से प्राप्त अन्न में से १६ या १८ या १।१२ भाग का अधिकारी बताया गया है । राजा अपने देश में निर्मित सामानों पर १।१० भाग और आयातित सामानों पर १।२० भाग कर के रूप में ले सकता था ।" १४. राजकीय व्यय का दान, ८३ प्रतिशत प्रतिशत बचत | राज्य का व्यय : हमारे आलोचित जैन पुराणों के रचनाकाल के समकालीन अन्य साक्ष्यों से राज्य के व्यय पर समुचित प्रकाश पड़ता है। ह्वेनसांग के अनुसार हर्षवर्धन अपनी राजकीय आय को चार भागों में बाँटकर व्यय करता था - ( १ ) प्रशासन एवं राज्य की प्रजा पर व्यय । (२) राज्य में समारोहों पर व्यय । ( ३ ) विद्वानों पर व्यय । ( ४ ) विभिन्न सम्प्रदायों को उपहार देने पर व्यय । मानसोल्लास के अनुसार राज्य की आय का तीन-चौथाई भाग व्यय होना चाहिए और एक-चौथाई भाग की बचत होनी चाहिए । जबकि शुक्राचार्य ने विभाजन इस प्रकार किया है - ५० प्रतिशत सेना एवं युद्ध, ८३ प्रतिशत जनहित प्रतिशत प्रशासन, 3 प्रतिशत निजीकोश और १६ राजकीय आय को प्रायः चार मदों में व्यय किया जाता था--- - (१) कर्मचारियों का वेतन, (२) राष्ट्रीय तथा सार्वजनिक कार्य, (३) शिक्षा और (४) दान । यहाँ पर समीक्षा का विषय है कि राज्य की आय को संचित कोश में रखते थे अथवा नहीं । इस विषय में प्रामाणिक विवरण का अभाव है । परन्तु मुसलमान लेखकों ने उल्लेख किया है कि हिन्दू राजा सिंहासन पर बैठते समय पूर्वजों द्वारा संचित कोश पाते थे । वे इसे संकट के समय व्यय करते थे । मुसलमान आक्रमण के समय भारी धनराशि लूटने का उल्लेख उपलब्ध है । इससे स्पष्ट होता है कि राजा संकट से बचने के लिए संचित कोश रखते होंगे । ' १. अर्थशास्त्र ५।२; मनु १०।११८ शुक्र ४ २ ६-१० २. विष्णुधर्मसूत्र ३ । २२; गौतम १० | २४ ; भनु ७।१३०; मानसोल्लास २।३।१६३ ३. विष्णुधर्मसूत्र ३।२६-३० ४. बी० बी० मिश्र - वही, पृ० १६३ ५. कैलाश चन्द्र जैन - वही, पृ० २६८ २६६ वासुदेव उपाध्याय - - पूर्व मध्यकालीन ६. पृ० ११५-११७ Jain Education International भारत, प्रयाग, For Private & Personal Use Only सं० २००६ www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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