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________________ राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था १८७. एक ओर अच्छे मित्रों की अनिवार्यता पर बल दिया गया है, वहीं दूसरी ओर दुष्ट मित्रों से सजग रहने के लिए सावधान भी किया गया है। दुष्ट मित्रों के विषय में पद्म पुराण में उल्लिखित है कि मंत्र, दोष, असत्कार, दान, पुण्य, स्वशूरवीरता, दुष्ट स्वभाव तथा मन की दाह का ज्ञान दुष्ट मित्रों को नहीं होना चाहिए।' ५. राजनय के चतुष्टय सिद्धान्त : महा पुराण में राजनय के चार मूल तत्त्वों की विवेचना उपलब्ध है । राज्य के सुचारु शासन-व्यवस्था के लिए निम्न चार तत्त्व-साम, दाम, दण्ड एवं भेद-मूलाधार थे ।२ जनेतर साक्ष्यों से भी राजनय के चतुष्टय सिद्धान्त-साम, दाम, दण्ड एवं भेद-पर समुचित प्रकाश पड़ता है। (i) साम : किसी पक्ष को मिलाकर या मित्र बनाकर काम करना ही साम सिद्धान्त है। (ii) दाम : इस सिद्धान्त के अन्तर्गत लोभी व्यक्ति को धनादि देकर वश में किया जाता है। (iii) दण्ड : यह सिद्धान्त निकृष्ट माना गया है । अन्य सिद्धान्तों के असफल हो जाने पर इसका प्रयोग करते हैं। इसका प्रयोग करने से पूर्व अपने सामर्थ्य का पूर्णतः ज्ञान होना आवश्यक है। (iv) भेद : इस सिद्धान्त द्वारा शत्रु को आपस में लड़ाकर सफलता प्राप्त की जाती है। ६. स्वराष्ट्र और परराष्ट्र नीति : जैन पुराणों के परिशीलन से स्वराष्ट्र (तंत्र) और परराष्ट्र (अवाय) नीति पर प्रकाश पड़ता है। महा पुराण के अनुसार राजा अपने मंत्रिमण्डल, राजपुत्रों, राज्यपालों, सहयोगियों तथा कर्मचारियों आदि के माध्यम से तंत्र (स्वराष्ट्र) की व्यवस्था का संचालन करता था। परराष्ट्र विषयक नीति-निर्धारण के लिए जैन ग्रन्थों में अवाय शब्द का प्रयोग किया गया है । राजा को स्वराष्ट्र एवं परराष्ट्र विषयक चिन्तन करना अनिवार्य था। जैनाचार्यों ने अमात्यों के साथ तंत्र और अवाय पर विचार-विमर्श १. पद्म ४७।१५; तुलनीय-शिव शेखर मित्र-मानसोल्लास : एक सांस्कृतिक अध्ययन, वाराणसी, १६६६, पृ० २०६-२०८ - २. महा ८/२५३ ३. रामायण ५१४१३; मनु ७।१०६; याज्ञवल्क्य ११३४६; शुक्र ४।१।७७; शिव शेखर मिश्र-वही, पृ० २२८-२३८ ४. तन्त्रावायमहाभारं ततः प्रभृतिः भूपतिः । महा ४६।७२; पद्म १०३१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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