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________________ राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था १८५ प्रकृति और अंग शब्द समानार्थ में प्रयुक्त हुआ है । 'प्रकृति' शब्द राज्य के मण्डल के अंगों का भी द्योतक है ।' शुक्रनीतिसार में 'प्रकृति' शब्द का तात्पर्य मंत्रियों से किया है ।२ रघुवंश में इसका प्रयोग प्रजा के अर्थ में हुआ है। शुक्रनीतिसार में राज्य के सप्तांगों की तुलना शरीर के अंगों से की गई है-राजा सिर, मंत्री नेत्र, मित्र कान, कोश मुख, बल (सेना) मन, दुर्ग (राजधानी) हाथ एवं राष्ट्र पैर हैं। कामन्दक ने उल्लेख किया है कि राज्य के सप्तांग एक दूसरे के पूरक हैं। यदि राज्य का कोई अंग दोषपूर्ण हुआ तो राज्य का संचालन समुचित रूप से नहीं हो सकता । मनु ने राज्य के सभी अंगों की एकता पर बल दिया है। उपर्युक्त राज्य के सप्तांगों में से यहाँ पर जनस्थान (देश), दुर्ग, कोश और मित्र की विवेचना प्रस्तुत है। अन्य शेष का वर्णन यथास्थान किया जायेगा : (i) जनस्थान : जनस्थान शब्द राष्ट्र के लिए प्रयुक्त हुआ है । 'राष्ट्र' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में उपलब्ध है। आलोच्य जैन पुराणों में से पद्म पुराणानुसार जनस्थान को जनपद या देश की संज्ञा प्रदत्त की गई है। इसमें पत्तन, ग्राम, संवाह, मटम्ब, पुटभेदन, घोष, द्रोणमुख आदि सम्मिलित थे। महा पुराण में उल्लेख है कि जनस्थान की प्रजा की सुरक्षा एवं सुव्यवस्थार्थ राजा होता है, जो इनकी सुख-समृद्धि एवं व्यवस्था का उत्तरदायित्व ग्रहण करता है । प्रजा इसके लिए राजा को कर प्रदान करती है। जैनेतर अग्नि पुराण में राष्ट्र को राज्य के सप्तांगों में शिखरस्थ स्थान प्राप्त है।" (ii) गढ़ : गढ़ या दुर्ग को ही उस समय राजधानी सम्बोधित किया गया है। प्राचीन काल से राज्य के संचालन एवं सुरक्षा की दृष्टि से दुर्ग का महत्त्वपूर्ण १. अर्थशास्त्र ६।२; मनु ७।१५६ २. शुक्रनीतिसार २।७०-७३ ३. रघुवंश ८।१८ ४. शुक्रनीतिसार ११६१-६२ ५. कामन्दक ४।१-२ ६. मनु ६२६५ ७. मम द्विता राष्ट्र क्षत्रियस्य । ऋग्वेद ४।४२ ८. पद्म ४१६५६-५७; तुलनीय-अर्थशास्त्र २।१; मनु ७।११४-११७; मानसोल्लास २।२।१५६-१६२ ६. महा १८।२७०-२८० १०. बी० बी० मिश्र-पॉलटी इन द अग्नि पुराण, कलकत्ता, १६६५, पृ० ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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