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विषयानुक्रम
४-१६
प्रकाशकीय आशीर्वचन पुरोवाक्
प्राक्कथन साक्ष्य-अनुशीलन
१-२२ (क) पुराण-व्याख्या : पारम्परिक एवं जैन दृष्टिकोण
१-३ (ख) इतिवृत्त एवं इतिहास शब्द का परिशीलन (ग) जैन पुराणों का उद्भव और विकास
(अ) रामायण विषयक पुराण; (ब) महाभारत विषयक पुराण; (स) त्रिषष्टिशलाकापुरुष विषयक पुराण;
(द) तिरसठशलाकापुरुषों के स्वतंत्र पुराण (घ) जैन पुराणों का रचना-काल
१६-१७ (ङ) जैन पुराणों की विशेषताएँ
१७-२० (च) प्रस्तुत अनुसंधान की पृष्ठभूमि एवं योजना
२०-२२ २. सामाजिक व्यवस्था
२३-१७६ (क) प्रारम्भिक स्वरूप एवं कुलकर परम्परा
२३-३१ १. भोगभूमि, कर्मभूमि तथा कुलकर परम्परा; २. कुल (परिवार) की महत्ता; ३. कुल (परिवार) का स्वरूप
एवं संघटन; ४. पारिवारिक परिधि : आयाम एवं सीमा । (ख) वर्ण-व्यवस्था
३२-५३ १. वर्ण-व्यवस्था और जैन मान्यता; २. वर्ण-व्यवस्था और उसका स्वरूप; ३. वर्ण-व्यवस्था के नियामक उपादान; ४. विभिन्न वर्गों की सामाजिक स्थिति एवं कर्त्तव्यअ. ब्राह्मण, ब. क्षत्रिय, स. वैश्य, द. शूद्र कारु एवं अकारु), य. दास प्रथा; ५. वर्णसंकर : उपजातियों का विश्लेषण, उपजातियाँ सामाजिक एवं आर्थिक विश्लेषण । आश्रम-व्यवस्था
५४-६४ १. ब्रह्मचर्याश्रम; २. गृहस्थाश्रम; ३. वानप्रस्थाश्रम, ४. संन्यासाश्रम ।
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