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सामाजिक व्यवस्था
१७५ [ड] धार्मिक एवं सामाजिक उत्सव मानव-जीवन में उत्सवों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनसे जीवन की एकरसता विनष्ट होती है और आन्तरिक आनन्दानुभूति से नवोल्लास का सृजन होने से जीवन में नवीनता आती है । इस प्रकार मनुष्य अपने जीवन-पथ पर अग्रगामी होता रहता है । जैन पुराणों में जन्मोत्सव, विवाहोत्सव एवं गर्भ कल्याणक महोत्सव आदि प्रमुख उत्सवों का उल्लेख उपलब्ध है । हर्ष के समय में भी मदनोत्सव (वसन्तोत्सव या मदनमहोत्सव), कौमुदी महोत्सव, उदयोत्सव एवं इन्द्रोत्सव आदि विषयक वर्णन उपलब्ध है ।' दण्डिन के काल में भी वसन्तोत्सव, कामोत्सव, इन्द्रपूजोत्सव एवं कुमुदोत्सव आदि का प्रचलन था । जैन कथाओं में जन्मोत्सव, विद्यारम्भोत्सव, विवाहोत्सव, निर्वाणोत्सव, वसन्तोत्सव एवं होलिकोत्सव आदि उत्सवों का उल्लेख प्राप्य होता है। अध्ययन की दृष्टि से उत्सव को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है : (अ) धार्मिक उत्सव तथा (ब) सामाजिक उत्सव ।
[अ] धार्मिक उत्सव : जैन पुराणों में धार्मिक उत्सव के अन्तर्गत निम्नांकित उत्सवों को सम्मिलित करते हैं :
१. पञ्चकल्याणक महोत्सव : जैन पुराणों में तीर्थंकरों के पञ्चकल्याणक महोत्सव, गर्भ, जन्म, दीक्षा के समय, केवल ज्ञान प्राप्त होने एवं निर्वाण के समय देवताओं द्वारा सम्पन्न किये जाते थे।
[i] गर्भ कल्याणक महोत्सव (गर्भ महोत्सव) : भगवान् ऋषभदेव के गर्भावस्था में आने पर माता मरुदेवी की सेवा में तत्पर देव कन्याओं का चित्रण जैन ग्रन्थों में उपलब्ध है। वह इस प्रकार है-उनसे आज्ञा प्राप्त करना, गुणगान करना, गीत गाना, पाँव दबाना, ताम्बूल देना, चमर डुलाना, वस्त्राभूषण देना, शय्या, लेप । करना आदि कार्य देव कन्याएँ इन्द्र के आदेश से सम्पन्न करती थीं।
fii] जन्मकल्याणक महोत्सव (जन्माभिषेक महोत्सव) : जैन पुराणों में वर्णित है कि तीर्थंकर के जन्मोत्सव के समय इन्द्र' का आसन कम्पायमान हो जाता
१. बैज नाथ शर्मा-हर्ष ऐण्ड हिज टाइम्स, वाराणसी, १६७०, पृ० ३६०-३६२ २. धर्मेन्द्र कुमार गुप्त-सोसाइटी ऐण्ड कल्चर इन द टाइम ऑफ दण्डिन, दिल्ली,
१६७२, पृ० २७०-२७२ ३. श्री चन्द्र जैन-जैन कथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन, जयपुर, १६७१, पृ० ५७ ४. पद्म ३।११२-१२०; हरिवंश ८६८-१०२; महा १२११६३, ६६२६
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