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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन एणाजिना' : कृष्ण - मृगचर्म को एणाजिन सम्बोधित किया गया है। तापसी एवं वनवासी मृगचर्म का प्रयोग वस्त्र एवं आसन के लिए करते हैं । उपानत्क' : उपानत्क शब्द से जूता का बोध होता है । महावग्ग' में जूते का वर्णन उपलब्ध है । यह रंग-बिरंगे एवं कई तल्ले के निर्मित किये जाते थे । उत्तरीय * : इसका दुपट्टार्थ प्रयोग हुआ है । इसे कन्धे पर धारण करते थे । " अमरकोश में उत्तरीय को ओढ़ने वाला वस्त्र कहा गया है । " १५० अन्य प्रकार के वस्त्र : अन्य प्रकार के वस्त्रों का जैन पुराणों में वर्णन उपलब्ध है - प्रच्छदपट ( चादर ), परिकर' (कमरबन्द), गल्लक' (गद्दा ), उपधान ( तकिया), लाल रंग का साफा", वल्कल १ २ ( वृक्षों के पत्तों से निर्मित), चर्म - निर्मित " और पीताम्बर" आदि । १. २. ३. ४. ५. ६. ७. महा ३६।२८ वही ३६ । १६३ महवग्ग ५।२।२, ५।१।२६ पद्म ३।१६८ ए० के० मजूमदार - चालुक्याज ऑफ गुजरात, पृ० ३५६ अमरकोश २।६।११८ पद्म १६।२४० ८. वही ८|४२४; २७।३१ ६. वही ७।१७२ १०. वही ७।१७२ ११. वही २७।६७ १२ वही ३।२६६ १३. वही ३।२६६ १४. हरिवंश ४१।३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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