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________________ १२० जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन डॉ० अनन्त सदाशिव अल्तेकर के मतानुसार पति की मृत्यु पर विधवा को सम्पत्ति नहीं मिलती। वह सम्पत्ति उसके पुत्रों को उपलब्ध होती है। इसके साथ ही पुत्र का यह उत्तरदायित्व होता था कि वह अपने माता की रक्षा अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त करते रहें। लक्ष्मी नारायण भारतीय ने जैनधर्म में विधवाओं को सम्पत्ति का अधिकारी माना है,२ परन्तु यह मत अमान्य है। ___ जैनेतर मार्कण्डेय पुराण विधवा के पुनर्विवाह का विरोध करता है । जब कि कई धर्मशास्त्रों ने नियोग प्रथा का उल्लेख किया है। वायु पुराण में नियोग प्रथा का उल्लेख प्राप्य है । वात्स्यायन ने विधवा के पुनर्विवाह के लिए 'पुनर्भु' शब्द का प्रयोग किया है। शूद्र विधवा स्त्रियों का पुनर्विवाह सामान्यतया होता था। जैनागम में विधवाओं के विवाह का उल्लेख उपलब्ध है। (v) वीराङ्गना : भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही वीर स्त्रियों, माताओं, बहनों एवं प्रेयसियों की प्रशंसा की गई है। उनके अदम्य साहस एवं त्याग के कारण इस देश को नयी दिशा मिली है । जब-जब देश पर संकट आया है, वे देश की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर करती रहीं। पद्म पुराण के अनुसार ऐसी स्त्रियाँ अपने प्राण-पति को युद्ध में भेजकर नवीन घाव बड़े गौरव से देखना चाहती थीं, क्योंकि उनके पति के शरीर के घाव पुराने पड़ गये थे । वे अपने पति से विजय की १. अल्तेकर-वही, पृ० ११६ २. लक्ष्मी नारायण भारतीय-जैन धर्म और नारी, श्रमण, वर्ष १८, अंक ३, जनवरी १६६७, पृ०६ ३. एम. वाई० देसाई-ऐशेण्ट इण्डियन सोसाइटी, रेलिजन ऐण्ड माइथालोजी एज डिपेक्टेड इन द मार्कण्डेय पुराण, बड़ौदा, १६६८, पृ० ४५ ४. गौतम १८१४-१४; महानिशीथ, पृ० २४; वशिष्ठधर्मसूत्र १७४५६-६५; बौधायनधर्मसूत्र २।२।१७; मनु ६।५६-६१; याज्ञवल्क्य १।६८-६९; नारद (स्त्रीपुंस ८०।१०१) १२१६७; कौटिल्य ३।६, १११७; महाभारत, अनुशासनपर्व ४४।५२-५३ पराशरस्मृति ४।२८ ५. पाटिल-कल्चरल हिस्ट्री फ्राम द वायु पुराण, दिल्ली, १६७३, पृ० ४५-४६ ६. चकलदर-स्टडीज़ इन द कामसूत्र, दिल्ली, १६७६, पृ० १८२ ७. बृजेन्द्र नाथ शर्मा-सोशल ऐण्ड कल्चरल हिस्ट्री ऑफ नार्दर्न इण्डिया, नई दिल्ली, १६७२, पृ० ६६ ८. जगदीश चन्द्र जैन-वही, पृष्ठ १८१-१८३ ६. पद्म ५७।१२-१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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