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________________ सामाजिक व्यवस्था ११७ कारिणी माता है, तू ही मंगलकारणी है, तू ही महादेवी है, तू ही पुण्यवती है और तू ही यशस्विनी है।' उक्त पुराण में वर्णित है कि संसार में वह मनुष्य अत्यधिक पुण्यात्मा है, जो माता की विनय में तत्पर रहता है तथा किंकरभाव से उसकी सेवा करता है। ___ महा पुराण के अनुसार सन्तानोत्पत्ति न होने पर कुल का नाश होता है और स्त्री को मुक्ति नहीं मिलती। उक्त पुराण में पुत्रोत्पत्ति का विशेष महत्त्व वर्णित है। यही कारण है कि संसार में साधारण से साधारण मनुष्य के लिए पुत्र का जन्म भी हर्ष का कारण है । इसी पुराण में अन्यत्र वर्णित है कि वस्तुतः स्त्रियाँ संसार की लता के समान हैं। यदि पुरुष के पुत्र नहीं हुआ तो इस पापी मनुष्य के लिए पुत्रहीन पापिनी स्त्रियों से क्या प्रयोजन है ? पद्म पुराण में पुत्र से बढ़कर प्रीति का और दुसरा स्थान नहीं है। महा पुराण के अनुसार कन्या उत्पन्न होने पर परिवार में शोक छा जाता था। इसी पुराण में अन्यत्र वर्णित है कि यदि किसी के पुत्र नहीं हुआ तो जिस घर में वह स्त्री प्रवेश करती है और जिस घर में उत्पन्न हुई है, उन दोनों ही घरों में शोक छाया रहता है । यदि भाग्यहीन होने से कोई बन्ध्या हुई तो उसका गौरव नहीं रहता । । महा पुराण में यह उल्लिखित है कि गर्भिणी स्त्री का विशेष ध्यान रखा जाता था। दोहला (दौहृद) को पूर्ण करना पति का परम कर्त्तव्य माना जाता था।' जलक्रीड़ा, वनक्रीड़ा और कथा आदि द्वारा गर्भिणी का मनोविनोद किया जाता था।" इस प्रकार दोहला पूर्ण होने पर उसका समस्त शरीर पुष्ट होता है और अकथनीय कान्ति एवं दीप्ति धारण करती थी। हरिवंश पुराण के अनुसार गर्भिणी स्त्रियों को दीक्षा-ग्रहण करने पर प्रतिबन्ध था। वे बच्चे के जन्म के बाद ही दीक्षा ले सकती थीं।१२ महा पुराण का 'अन्तर्वन्ती' शब्द गर्भिणी के लिए प्रयुक्त होने पर उसका महत्त्व बढ़ जाता है ।१२ पाण्डव पुराण में गर्भिणी की स्थिति का सुन्दर चित्रण उपलब्ध है। १. महा १३।३०; तुलनीय-गौतम २।५६; मनु २।१४५; वशिष्ठ धर्मसूत्र १३।४८ २. पद्म ८११७६ ७. महा ६८/१७० ३. महा ६८।१७३ ८. महा ६८।१६६ ४. वही ५६।२० ६. वही १५।१३७, ७०।३४३ ५. वही ५४।४४ १०. वही १२।१८७, ६. पद्म ८।१५७ ११. पद्म ७११ १२. हरिवंश १८१२० १३. अन्तर्वन्तीमथाभ्यर्णे नवमे मासि सुन्दरम् । महा १२।२१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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