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________________ 1333 जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन प्राप्त नहीं होते हैं । अतएव यह निश्चित करना कठिन है कि इनमें किस विधि को किस सीमा तक मान्यता मिली थी । जैन आगमों के सम्बन्ध में डॉ० जगदीश चन्द्र जैन का मत है कि जैन आगमों में विवाह के तीन प्रकार - माता-पिता द्वारा आयोजित, स्वयंवर तथा गान्धर्व-हैं । पी० थामस के मतानुसार जैन धर्म में चार प्रकार के विवाह प्रचलित थे-माता-पिता द्वारा नियोजित, स्वयंवर, गान्धर्व तथा असुर 12 आलोचित जैन पुराणों में प्रसंगतः जिन विवाहों के उल्लेख मिलते हैं, वे इस प्रकार हैं: (i) स्वयंवर, (Ii) गान्धर्व, (iii) परिवार द्वारा नियोजित, (iv) प्राजापत्य, (v) राक्षस । ऐसा प्रतीत होता है कि जैन पुराणों के रचनाकाल में स्वयंवर को विवाह की पृथक् विधि मानने के संदर्भ में दो मत प्रचलित थे । धर्मशास्त्रीय सम्प्रदाय में स्वयंवर को पृथक्तः विवाह-विधि नहीं मानते थे, अपितु इसे गान्धर्व विवाह का ही अंग माना जाता था । उदाहरणार्थ, याज्ञवल्क्य स्मृति (१।६१ ) में वीर - मित्रोदय ने यह स्पष्टतया कहा है कि स्वयंवर भी गान्धर्व विवाह है । किन्तु दूसरी ओर स्थिति यह थी कि जैन सम्प्रदाय में स्वयंवर और गान्धर्व दोनों को पृथक्-पृथक् विवाह विधि के रूप में स्वीकार किया गया है । यहाँ उल्लेखनीय है कि क्षेत्रीय, परिस्थितिजन्य और सम्प्रदायगत वैशिष्ट्य एवं आग्रह के कारण विवाहों के प्रकार के विषय में जो उल्लेख मिलते हैं, उनमें समरूपता नहीं थी । न केवल जैन सम्प्रदाय में, अपितु ब्राह्मण सम्प्रदाय में भी विवाह के प्रकारों की संख्या को कम करने की परम्परा चल पड़ी थी । उदाहरणार्थ, ब्रह्माण्ड पुराण का प्रमाण प्रस्तुत किया जा सकता है, जिसके अनुसार विवाह की चार ही विधियाँ - कालकीत, क्रमक्रीत, स्वयंयुत तथा पितृदत्त - हैं ।" ब्रह्माण्ड पुराण का यह स्थल लगभग हमारे आलोच्य पुराणों के समयावधि में आता है । क्योंकि पुराण समीक्षक के अनुसार ब्रह्माण्ड पुराण गुप्तोत्तर काल में संकलित हुआ था, जिसकी रचना का क्रम १००० ई० तक चलता है ।" कालिदास ने विवाह के आठ प्रकारों में से केवल गान्धर्व, १. जगदीश चन्द्र जैन - जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, वाराणसी, १६६५, पृ० २५३ २. पी० थामस - इण्डियन वीमेन थ्रू द एज़ ेज़, लन्दन, १६५४, पृ० १०७ ३. काणे - हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र, पृ० ५२३; एस० एन० राय - वही, पृ० २३२ ४. ब्रह्माण्ड पुराण ४।१५।४ ५. हाजरा - स्टडीज इन द पौराणिक रिकर्डस ऑफ हिन्दू राइट्स एण्ड कस्टमस, - हिस्टोरिकल ऐण्ड कल्चरल स्टडीज़ इन द पृ० १३६ एस० एस० राय - पुराणाज़, इलाहाबाद, १६७८, पृ० १६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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