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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
हैं । इस क्रिया में भगवान् अभिक्रमण करते हैं तथा केश लोचना, होती है । "
पूजा आदि ४६. योगसम्मह क्रिया : मोक्ष के इच्छुक उन भगवान् की योग सम्मह नामक क्रिया होती है । ध्यान और ज्ञान के संयोग को योग कहते हैं और उस योग से जो अतिशय तेज उत्पन्न होता है, वह योगसम्मह कहलाता है । 2
५०. आर्हन्त्य क्रिया : आठ प्रातिहार्य, अट्ठारह दिव्य सभा, स्तूप, मकानों की पंक्तियाँ, कोट का घेरा और पताकाओं की पंक्ति इत्यादि अद्भुत विभूति को धारण करने वाले उन भगवान् के आर्हन्त्य नाम की यह एक भिन्न क्रिया है ।
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५१. विहार क्रिया : धर्म चक्र को आगे कर भगवान् के विहार को बिहार क्रिया कहते हैं । *
५२. योगत्याग क्रिया : धर्ममार्ग के उपदेश द्वारा परोपकारार्थ जिन्होंने तीर्थ विहार किया है, ऐसे भगवान् की योगत्याग नामक क्रिया होती है । जिसमें विहार करना समाप्त होकर, सभाभूमि ( समवसरण ) विघटित होती है तथा योगनिरोध करने के लिए अपनी वृत्ति करने को योगत्याग क्रिया कहा गया है । "
५३. अग्रनिवृत्ति क्रिया : महा पुराण में वर्णित है कि जिनके समस्त योगों का निरोध हो चुका है, जो जिनों के स्वामी हैं, जिन्हें शील के ईश्वरत्व की अवस्था प्राप्त हुई है, जिनके अघातिया कर्म नष्ट हो चुके हैं, जो स्वभाव से उत्पन्न हुए ऊर्ध्वगति को प्राप्त हुए हैं और जो उत्कृष्ट मोक्षस्थान पर पहुँच गये हैं, ऐसे भगवान् की अग्रनिर्वृत्ति नाम की क्रिया मानी गयी है ।
[ब] दीक्षान्वय क्रिया : 'दीक्षायाः अन्वयनम् इति' तत्पुरुष समास से 'दीक्षान्वय' शब्द निर्मित होता है, जिसका तात्पर्य दीक्षा के अनुरूप क्रिया करने से है । इसका सम्बन्ध धार्मिक अभ्युदय से है । इन क्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं धार्मिकता का विकास होता है और वह श्रावक या मुनिपद प्राप्त करता है । व्रतों का धारण (पालन) करना दीक्षा है । व्रत के दो भेद हैं : (१) महाव्रत - सभी प्रकार के हिंसादि पापों का त्याग करना महाव्रत है । ( २ ) अणुव्रत - स्थूल हिंसादि दोषों से
१.
महा ३८१२६६-२६४
२ . वही ३८।२६५-३००
३. वही ३८।३०२-३०३
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४.
महा ३८१३०४
५.
वही ३८१३०५-३०६
६. वही ३८३०८-३०८
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