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________________ सामाजिक व्यवस्था ८१ २८. गणोपग्रह क्रिया : सदाचारी एवं गण ( मुनि संघ ) पोषक द्वारा कृत क्रियाओं को महर्षियों ने गणोपग्रह क्रिया मानी है। वह मुनि, आर्यिका, श्रावक एवं श्राविकाओं को समीचीन मार्ग में लगाता; अच्छी तरह संघ का पोषण करता, दीक्षा देता, धर्म का प्रतिपादन करता, सदाचार को प्रेरित करता, दुराचारियों को दूर हटाता तथा अपने अपराध का प्रायश्चित्त करता है। इस प्रकार वह गण की रक्षा करता है। २६. स्वगुरुस्थानावाप्ति क्रिया : इस प्रकार संघ का पालन करता हुआ वह अपने गुरु के स्थान को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। कालान्तर में वह समस्त विद्याओं को पढ़ने वाले तथा मुनियों द्वारा समादृत शिष्य के ऊपर अपना भार सौंप देता है । गुरु की अनुमति से वह शिष्य भी गुरु के स्थान पर अधिष्ठित होता हुआ उनके समस्त आचरणों का स्वयं पालन करता है तथा समस्त संघ को पालन कराता है । महा पुराण में इसे स्वगुरुस्थानावाप्ति क्रिया कहा गया है। ३० निःसंगत्वात्मभावना क्रिया : इस प्रकार सुयोग्य शिष्य पर समस्त भार सौंपकर कभी दुःखी न होने वाला वह साधु अकेला इस भावना से विहार करता था कि 'मेरी आत्मा सब प्रकार के परिग्रह से रहित है'। ३१. योगनिर्वाण संप्राप्ति क्रिया : अपने आत्मा का संस्कार कर सल्लेखना-धारणार्थ उद्यत और सब प्रकार से आत्मा की शुद्धि करने वाला पुरुष योग निर्वाण क्रिया को प्राप्त होता है। योग नाम ध्यान का है, उसके लिए जो संवेगपूर्वक प्रयत्न किया जाता है, उस परमतप को योगनिर्वाण संप्राप्ति कहते हैं । जो नित्य और अनन्त सुख का स्थान है, ऐसे लोक के अग्रभाग (मोक्ष स्थान) में मन लगाकर उस योगी को योग (ध्यान) की सिद्धि के लिए योगनिर्वाण क्रिया की भावना करने का विधान है।" ३२. योगनिर्वाणसाधन क्रिया : समस्त आहार और शरीर को छोड़ता हुआ वह योगिराज योगनिर्वाण साधनार्थ उद्यत होता है । इस योग का नाम समाधिका है। इस समाधि के द्वारा चित्त को जो आनन्द होता है उसे निर्वाण कहते हैं, चूंकि योगनिर्वाण इष्ट पदार्थों का साधन है, इसलिए इसे योगनिर्वाणसाधन कहते हैं।" १. महा ३८।१६८-१७१ ४. महा ३८।१७८-१८५ २. वही ३८।१७२-१७४ ५. वही ३८।१८६-१८६ ३. वही ३८।१७५-१७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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