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आदिकर्ता ऋषभदेव हुए हैं। ऋषभेदव के बड़े पुत्र भरत थे, जो इस युग के प्रथम चक्रवर्ती थे और उन्हीं के नाम पर श्रीमद्भागवत (5/4) के उल्लेखानुसार इस देश का नाम भारतवर्ष हुआ। इस सम्बन्ध में हम अधिक विस्तार न करके कुछ विद्वानों के विचार यहाँ प्रस्तुत कर देते हैं।
विश्व के महान् दार्शनिक राष्ट्रपति डा. राधाकृष्णन् अपने 'भारतीय दर्शन का इतिहास' नामक महान् ग्रन्थ में लिखते हैं___“जैन परम्परा ऋषभदेव से अपनी उत्पत्ति का कथन करती है, जो बहुत-सी शताब्दियों पूर्व हुए है। इस बात के प्रमाण पाये जाते हैं कि ईसवी पूर्व प्रथम शताब्दी में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजा होती थी। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जैन धर्म वर्धमान और पार्श्वनाथ से भी पहले प्रचलित था। यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ
और अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थंकरों के नाम आते हैं। भागवत पुराण भी इस बात का समर्थन करता है कि ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे।
सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ श्री जयचन्द्र विद्यालंकार जैन-धर्म की प्राचीनता के सम्बन्ध में अपने विचार लिखते हैं-'जैन-धर्म बहुत प्राचीन है और महावीर से पहले तेईस तीर्थंकर हो चुके हैं, जो उस धर्म के प्रवर्तक एवं प्रचारक थे। सबसे पहला तीर्थंकर राजा ऋषभदेव था, जिसके एक पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष हुआ।
भगवान् ऋषभदेव की ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में विद्वानों ने जो मत व्यक्त किये हैं, वे भारतीय धर्म ग्रन्थों एवं सांस्कृतिक परम्परा के गम्भीर अध्ययन पर आधारित है। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में भगवान् ऋषभदेव की प्रार्थना-स्तुति मिलती है।
१. भारतीय दर्शन का इतिहास (जि. १ पृ. २८) २. भारतीय इतिहास की रुपरेखा (पृ. ३४७)। ३. ऋग्वेद सातवलेकर संस्करण (सन १६४०)
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जैन धर्म की प्राचीनता (85) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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