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भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता में आज इतने प्रचुर प्रमाण मिल रहे हैं कि जैन-धर्म को आधुनिक कहने वाली पुरानी मान्यताएँ अब खण्डित हो गई हैं।
वैदिक परम्परा में जैन - इतिहास के मूल स्वर
जैन - परम्परा के बाईसवें तीर्थंकर भगवान् नेमिनाथ, जो वासुदेव श्रीकृष्ण के भाई (ताऊ के लड़के ) भी थे और फिर धर्म गुरु भी रहे। उनके सम्बन्ध में आज अनेक विद्वान्, छान्दोग्य उपनिषद् (प्रपाठक ३ खण्ड १७) आदि के अनुसार यह मान चुके हैं कि भगवान् नेमिनाथ के द्वारा ही श्रीकृष्ण को अहिंसा का उपदेश मिला था । मथुरा से प्राप्त होने वाली भगवान् नेमिनाथ की मूर्तियों में श्रीकृष्ण और बलराम का अंकन दोनों ओर पाया गया है। इसे सुप्रसिद्ध पुरातत्व - विद् विद्वान स्व. डा. वासुदेव शरण अग्रवाल मान चुके हैं। इसके अतिरिक्त भगवान् नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) का नाम यजुर्वेद में भी आता है। भगवान् नेमिनाथ के सम्बन्ध में यजुर्वेद का वह मन्त्र यहाँ पर उद्धृत करते हैं
वाजस्यनु प्रसव आवभू मा च, भुवनानि स नेमि राजा परियाति
विश्वा
सर्वतः ।
विद्वान,
प्रजां पुष्टिं वर्द्धमानो अस्मै स्वाहा ।।
अर्थात् अध्यात्म यज्ञ को प्रकट करने वाले, संसार के सब जीवों
को सब प्रकार से यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा बलवान होती है, उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए आहुति समर्पित है। भगवान् ऋषभदेव वर्तमान कालचक्र के प्रथम तीर्थकर है। एक दृष्टि से यह माना जा सकता है कि इस कालचक्र में जैन-धर्म के
१. ( वाजसनेयि - माध्यदिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता, अध्याय ६ मन्त्र २५
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यजुर्वेद सातवलेकर संस्करण (विक्रम १९८४)
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