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पापी का नहीं,
किन्तु जो पापमय मनोदशा को धिक्कारता है,
जिसके धिक्कार में भी प्रेम हो,
जिसके धिक्कार में से भी स्नेह का मधु रस झरता हो,
जिसके स्नेह की शीतल धारा,
द्वेष के धधकते दावानल को भी बुझा दे,
जिसके प्रेम का जादू,
पापी के कठोरतम अन्तर को भी पिघला दे, वही आदर्श साधु है !
१. दुर्जन के प्रति दुर्जनता । २. दुर्जन के प्रति भी सज्जनता ।
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