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जो नया युग, नया वातावरण प्रगटता है, अपने सरल, श्रद्धामय और निष्पाप जीवन से, मानव-समाज को जो जीवन का सच्चा मर्म बताता है वही आदर्श साधु है !
संकट के क्षणों में, जो भागता नहीं, किन्तु संकटों का सात्विक परिमार्जन करता है, आध्यात्मिक शक्ति के बल से, संकटों पर आधिपत्य स्थापित करता है ! जगत् के विष को शान्तिपूर्वक पीकर बदले में, प्रसन्न मुखमुद्रा से अमृत की वृष्टि करता है, 'शठप्रति शाठ्यं कुर्यात' के स्थान पर, 'शठं प्रति भद्रं कुर्यात्' का मुद्रा लेख लेकर, पत्थर फेंकने वाले पर भी जो पुण्यवृष्टि करता है, गाली देने वाले को भी आशीर्वाद देता है ! अपकार का बदला उपकार से देकर, अपनी पूर्ण दिव्यता का दर्शन कराता है, वही आदर्श साधु है !
जिसकी अहिंसात्मक अमृत दृष्टि जंगल में भी मंगल करे, जहर को भी अमृत में बदल दे, शत्रु को भी मित्र बना ले, वही है आदर्श साधु !
जैनत्व की झाँकी (80) Jain Education International
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