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चारों ओर शान्ति एवं सहज सरलता झलके ! क्षमा के शान्ति-मन्त्र पढ़कर, जो जगत् में से कलह और क्षोभ की व्याधि हरने वाला महान् धन्वंतरि बने, और जिसके सत्संग में, आत्म-तत्व के शोध की बलवती क्षुधा जागृत हो, वही आदर्श साधु है।
सुन्दर अप्सरा हो अथवा कुरुप कुब्जा, दोनों ही जिसकी दृष्टि में केवल काठ की पुतली है। कंचन और कामिनी का सच्चा त्यागी, लोभ और मोह के विषाक्त बाण से जो बिंधे नहीं ! सम्राटों का भी सम्राट, और चक्रवर्तियों का भी चक्रवर्ती, अन्तर्जीवन की विपुल अध्यात्म-समृद्धि के, अक्षय-कोष का एकमात्र स्वतन्त्र स्वामी, वही है, आदर्श साधु !
पाप के फल से नहीं, किन्तु पाप की वृत्ति से ही जो मुक्ति चाहता है, दुरंगी दुनिया के मोहक शब्दों की अपेक्षा, आत्मा की अन्तर्ध्वनि की जो बहुमान देकर चलता है, अपने सबल और स्वतंत्र विचारों से,
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