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________________ परम तत्व की खोज में, ज्ञान और क्रिया का अवलंब लेकर जो आत्मा की पूर्ण शक्ति से सतत गतिमान् रहता है वही सच्चा साधु है ! साधु अर्थात? समभाव का साधक ! जिसकी साधना का अन्तिम ध्येय 'सिद्धत्व हो, वही है आदर्श साधु ! आत्म-दर्शन, जिसके जीवन का नित्य रटन हो, दर्शन-ज्ञान-चारित्ररुप रत्नत्रय की आराधना हो, जिसकी सच्ची साधना हो, आत्म-स्वरुप में, जिसका प्रतिदिन रमण हो ! और विकार-मुक्ति ही जिसकी जीवन-यात्रा का अन्तिम विश्राम केन्द्र हो, वही आदर्श साधु है ! आदर्श साधु, क्षमा की जीवित मूर्ति हो ! उसके शान्त हृदय में, क्रोध की कमी एक क्षीण रेखा भी न उभरे ! - - Jain Edi h 478) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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