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________________ इसी प्रकार एक बकरी के जन्म भर के दूध से भी 25,920 आदमियों का परिपालन एक बार हो सकता है। हाथी, घोड़े, ऊँट, भेड़ आदि प्राणियों से भी इसी प्रकार अनेक उपकार मनुष्य के लिए होते रहते हैं। अतएव इन उपकारी पशुओं को जो लोग खुद मारने तथा दूसरों से मरवाने का काम करते हैं, उनको परोक्ष रूप में सारे मानव-समाज की हत्या करने वाला ही समझना चाहिए। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी माँस निषिद्ध वस्तु है। प्रायः मांसाहार से कैंसर, क्षय, पायोरिया, गठिया, सिर-दर्द, मृगी, उन्माद, अनिद्रा, लकवा, पथरी आदि भयंकर रोगों का आक्रमण होता है। शारीरिक बल और मानसिक प्रतिभा पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस सम्बन्ध में यूरोप के ब्रुसेल्स विश्वविद्यालय आदि में जो वैज्ञानिक परीक्षण हुए हैं, उसमें भी माँसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारी ही श्रेष्ठ प्रमाणित हुए हैं। कहा जाता है-दस हजार विद्यार्थी उपर्युक्त परीक्षण में सम्मिलित हुए थे। इनमें से पाँच हजार को केवल फल, दूध, अन्न आदि शाकाहार पर और पाँच हजार को मांसाहार पर रखा गया था। छह महीने बाद जाँच करने पर मालूम हुआ कि मांसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारी सब बातों में तेज रहे। शाकाहारियों में दया, क्षमा, प्रेम, आदि गुण प्रकट हुए और मांसाहारियों में क्रोध, क्रूरता, भीरुता आदि । मांसाहारियों से शाकाहारियों में बल, सहनशक्ति आदि गुण भी विशेष रुप में पाये गए । शाकाहारियों में मानसिक शक्ति का विकास भी अच्छा हुआ । किं बहुना, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य आदि सभी दृष्टियों से मांसाहार सर्वथा हेय है। जो मनुष्य, मनुष्य कहलाने का अधिकारी है। उसे तो मांसभक्षण का सदा के लिए त्याग कर देना चाहिए । Jain चैनल की हॉकी (76) For Private & Personal Use Only 000 www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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