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________________ है। मांसाहार की आदत उसने बाह्य विकृति से प्राप्त कर ली है, वह उसकी मूल प्रकृति के अनुकूल नहीं पड़ती। आर्थिक दृष्टि से भी मांसाहार देश के लिए घातक ठहरता है। गाय, भैंस, बकरी आदि देश के लिए बड़े ही उपयोग पशु हैं। मांसाहारियों द्वारा इनका संहार करना कितना भयंकर है। जरा ध्यान से देखने योग्य है। उदाहरण के लिए गाय को ही ले लीजिए। अर्थशास्त्रियों ने हिसाब लगाया कि गाय से हमें दूध, दही, घी, बैल, गोबर आदि मिलते हैं। एक गाय की पूरी पीढ़ी से 4,72,600 मनुष्यों को सुख पहुँचता है। जीवविज्ञान विशारदों ने गहरी छानबीन के पश्चात् हिसाब लगाया है कि गोवंश में से प्रत्येक गाय के दूध का मध्यमान ग्यारह किलो का आता है। उसके दूध देने के समय का औसत बारह महीने रहता है। अस्तु, प्रत्येक गाय के जन्म-भर के दूध से 24,960 मनुष्यों की एक बार में तृप्ति होती है। मध्यमान के नियमानुसार प्रत्येक गाय से छह बछिया और छह बछड़े मिल पाते हैं। इनमें से यदि एक-एक मर भी जाए तो पाँच बछियों के जीवन-भर के दूध से 1,24,800 मनुष्य एक बार तृप्त हो सकते हैं। अब रहें पाँच बैल। अपने जीवन-काल में, मध्यमान के अनुसार, कम से कम दो हजार क्विण्टल अनाज पैदा कर सकते हैं। . यदि प्रत्येक आदमी एक बार में तीन पाव अनाज खाए तो उससे साधारणतया ढाई लाख आदमियों की एक बार में उदर-पूर्ति हो सकती है। बछियाओं के दूध और बैलों के अन्न को मिला देने से 3,74,800 मनुष्यों की भूख एक बार में बुझ सकती है। दोनों संख्याओं को मिलाकर एक गाय की पीढ़ी में 4,75,690 मनुष्य एक बार में पालित हो जाते हैं। इतना ही नहीं, बैलों से गाड़ियाँ चलती हैं। उनसे सवारी का काम लिया जाता है, भार उठाने के काम में भी वे आते हैं। यही कारण है कि भारतीय लोगों ने गाय को 'माता' कह कर पुकारा है। - - - - - - - - - - मांसाहार का निवेश (15) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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