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संकुचित हो जाते हैं, अतः भोजन का परिपाक अच्छी तरह नहीं हो
पाता ।
रात्रि भोजन से प्रत्यक्ष हानियाँ
धर्म - शास्त्र और वैद्यक - शास्त्र की गहराई में न जाकर यदि यह साधारण तौर पर होने वाली रात्रि -- भोजन की हानियों को देखें, तब भी यह सर्वथा अनुचित ठहरता है। भोजन में यदि चींटी खाने में आ जाए तो बुद्धि का नाश होता है, जूँ खाई जाए तो जलोदर नामक भयंकर रोग हो जाता है मक्खी पेट में चली जाए तो वमन हो जाता है, छिपकली खा ली जाय, तो कोढ़ हो जाता है, शाक आदि में मिलकर बिच्छु पेट में चला जाए तो वह तालु बेध डालता है और यदि बाल गले में चिपक जाए तो स्वरभंग हो जाता है। इस प्रकार अनेक दोष रात्रि - भोजन में प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होते हैं।
रात्रि का भोजन, वास्तव में खतरनाक है। एक दो नहीं, देश में हजारों ही दुर्घटनायें, रात्रि भोजन के कारण होती हैं। सैंकड़ों ही लोग अपने जीवन तक से हाथ धो बैठते हैं।
अतः रात्रि - भोजन सब प्रकार से त्याज्य है। जैन-धर्म में तो इसका बहुत ही प्रबल निषेध किया गया है। अन्य धर्मों में भी इसे आदर की दृष्टि से नहीं देखा गया है। कूर्म पुराण आदि वैदिक पुराणों में भी रात्रि भोजन का निषेध है। महात्मा गाँधी ने जीवन के अन्तिम चालीस वर्षों में 'रात्रि-भोजन त्याग' को बड़ी दृढ़ता के साथ निभाया था । यूरोप गए तब भी उन्होंने रात्रि भोजन नहीं किया । प्रत्येक जैन का कर्त्तव्य है कि रात्रि भोजन का त्याग करे, न रात्रि में भोजन बनाए और न खाए ।
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भोजन का विवेक
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