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रात्रि भोजन का निषेध क्यों
आज के युग में कुछ मनचले लोग तर्क किया करते हैं-"रात्रि में भोजन का निषेध सूक्ष्म जीवों को देख सकने के कारण ही किया जाता है न ? अगर इस रात में बिजली जला लें और प्रकाश कर लें, . फिर तो कोई हानि नहीं ?" बात यह है कि बिजली जला लेने से रात्रि भोजन के सम्भावित दोष तो दूर नहीं हो सकते। पहली बात तो यह है कि बिजली पर अनेक प्रकार के कीट-पतंग मँडराते रहते हैं, वे उड़ उड़ कर तुम्हारे भोजन में भी गिर सकते हैं। बहुत से सूक्ष्म जीवों का तो पता भी नहीं चल पाता कि वे भोजन के साथ पेट में कब चले जाएँगे।
दूसरी बात यह है कि स्वास्थ्य के लिए भी रात्रि-भोजन त्याज्य माना है। सूर्य के प्रकाश में जो ऊष्मा रहती है, वह अन्न को पचाने में सहयोगी बनती है। दिन में खाने से भोजन और सोने के समय में अन्तर भी काफी रह जाता है, और इस प्रकार अन्न को ठीक तरह पचने का अवसर मिल जाता है। रात्रि में भोजन करने वाले बहुत-से लोगों की यही आदत हो गई है कि खाया और बिस्तर पर लेटे, इससे न पूरा अन्न हजम होता है और न उसका रस ही ठीक से बनता है। यही कारण है कि रात्रि में भोजन करने वालों को बदहजमी और कब्ज आदि की अनेक शिकायतें होती रहती हैं।
त्याग-धर्म का मूल सन्तोष में है। इस दृष्टि से भी दिन की अन्य सभी प्रवृत्तियों के साथ भोजन की प्रवृत्ति को भी समाप्त कर देना चाहिए, तथा सन्तोष के साथ रात्रि में पेट को पूर्ण विश्राम देना चाहिए। ऐसा करने से भली-भाँति निन्द्रा आती है। ब्रह्मचर्य पालन में भी सहायता मिलती है, और सब प्रकार से, आरोग्य की वृद्धि होती है। जैन धर्म का यह नियम, पूर्णतया आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि के लिए हुए हैं। आयुर्वेद में भी रात्रि-भोजन को बल, बुद्धि और आयु का नाश करने वाला बतलाया गया है। रात्रि में हृदय और नाभि-कमल
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जैनत्व की झाँकी (70)
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