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. दान तभी दिया जा सकता है, जब मन में करुणा, त्याग व उदारता की कोई लहर उठती है। दान का जितना सामाजिक महत्व है, उससे भी कहीं अधिक आध्यात्मिक महत्व है। दान करना धर्मसाधना का मुख्य अंग है। अतः आवश्यक है कि उसके सम्बन्ध में हमें यथेष्ट ज्ञान हो, इसलिए पढ़िए निबन्ध-दान !
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दान
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दान की महत्ता
भारतवर्ष धर्म-प्रधान देश है। यहाँ धर्म को बहुत अधिक महत्व दिया गया हैं वहाँ छोटी-सी-छोटी बात को भी धर्म की कसौटी पर परखा जाता है। भारत में धर्म-क्रियाओं की कोई निश्चित गिनती नहीं है। जीवन समाप्त हो सकता है, परन्तु धर्म-क्रियाओं की गणना नहीं हो सकती। जितने भी अच्छे विचार और अच्छे आचार हैं, वे सब धर्म
हैं।
परन्तु विश्व के धर्मों मे सबसे बड़ा धर्म कौन है, यह एक प्रश्न है, जो अनादि काल से साधक के मन में उठता आया है। इस प्रश्न का समाधान अनेक प्रकार से किया गया है। किसी महापुरुष ने तप को बड़ा धर्म बताया है, किसी ने दया को, किसी ने सत्य को, किसी ने भगवद् भक्ति को, किसी ने ब्रह्मचर्य को, तो किसी ने क्षमा को। सभी ने अपने-अपने दृष्टिकोण से ठीक कहा है। परन्तु हमें यहाँ एक महापुरुष की बात, सबसे अच्छी मालूम देती है कि “दान-धर्म सबसे बड़ा धर्म है।
दान का महत्व बढ़ा-चढ़ा है। दान दुर्गति का नाश करता है, मनुष्य के हृदय को विशाल और विराट बनाता है, सोई हुई मानवता
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