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________________ जैन का अर्थ अजेय है, जो मन और इन्द्रियों के विकारों को जीतने वाला, आत्म-विजय की दिशा में सतत सतर्क रहने वाला है, वही सच्चा जैन है । 'जैनत्व' और कुछ नहीं, आत्मा की शुद्ध स्थिति है ! आत्मा को जितना कसा जाय, उतना ही जैनत्व का विकास ! जैन कोई जाति नहीं धर्म है ! किसी भी देश, पंथ और जाति का, कोई भी आत्म-विजय के पथ का यात्री, वही जैन । जैन बहुत थोड़ा, परन्तु मधुर बोलता है, मानो झरता हुआ अमृतरस हो ! उसकी मृदुवाणी, कठोर से कठोर हृदय को भी, पिघला कर मक्खन बना देती है ! जैन के जहाँ भी पाँव पड़ें, वहीं कल्याण फैल जाय ! जैन का समागम, जैने का सहचार, सबको अपूर्व शान्ति देता है ! इसके गुलाबी हास्य के पुष्प, मानव जीवन को सुगन्धित बना देते हैं ! उसकी सब प्रवृत्तियाँ, जीवन में रस और आनन्द भरने वाली हैं । जैन गहरा है अत्यन्त गहरा है । वह छिछला नहीं छिलकने वाला नहीं ! जैनत्व की झाँकी (56) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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