SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि और पचपन हजार साध्वियाँ इनके शिष्य हुए तथा 1,79,000 श्रावक और 3,70,000 श्राविकाएँ थीं। २०. मुनिसुव्रतनाथ भगवान् मुनि सुब्रतनाथ बीसवें तीर्थंकर हैं। जन्म-भूमि राजगृह नगरी, पिता हरिवंश कुलोत्पन्न सुमित्र राजा और माता पद्यावती-देवी। जन्म ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी और निर्वाण ज्येष्ठ कृष्णा नवमी को हुआ। निर्वाणभूमि सम्मेतशिखर है। २१. नमिनाथ भगवान् नमिनाथ इक्कीसवें तीर्थंकर हैं। इनकी जन्म-भूमि मिथिला नगरी थी। कुछ आचार्य मथुरा नगरी बताते हैं। पिता विजयसेन राजा और माता वप्रादेवी। जन्म श्रावण कृष्णा अष्टमी और निर्वाण वैशाख कृष्णा दशमी को हुआ। आपकी भी निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। २२. नेमिनाथ भगवान् नेमिनाथ बाइसवें तीर्थंकर हैं। दूसरा नाम अरिष्टनेमि भी था। आपकी जन्म-भूमि आगरा के पास शोरीपुर नगर। पिता यदुवंश के राजा समुद्रविजय और माता शिवादेवी थीं। जन्म श्रावण शुक्ला पंचमी और निर्वाण आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को हुआ। निर्वाण-भूमि सौराष्ट्र में गिरनार पर्वत हैं, जिसे पुराने युग में रेवतगिरि भी कहते थे। भगवान् अरिष्टनेमि कर्मयोगी श्रीकृष्णचन्द्र के ताऊ के पुत्र भाई थे। श्रीकृष्ण ने भगवान् नेमिनाथ से धर्मोपदेश सुना था। इनका विवाहसम्बन्धी महाराजा उग्रसेन की सुपुत्री राजीमती से निश्चित हुआ था, किन्तु विवाह के अवसर पर बरातियों के भोजन के लिए वमु-वध होता देखकर इनका हृदय द्रबित हो उठा, फलतः वापस लौटकर मुनि बन गए, विवाह नहीं किया। - - Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy