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________________ सम्मेतशिखर है। भगवान् शान्तिनाथ भारत के पंचम चक्रवर्ती राजा भी थे। इनके जन्म लेने पर देश में फैली हुई मृगी रोग की महामारी शान्त हो गई थी, इसलिए माता-पिता ने उनका नाम शान्तिनाथ रखा। ये बहुत ही दयालु प्रकृति के थे। पहले जन्म में जबकि वे मेघरथ राजा थे, कबूतर की रक्षा के लिए उसके बदले में बाज को अपने शरीर का माँस काट कर दे दिया था। १७. कुन्थुनाथ भगवान् कुन्थुनाथ सत्रहवें तीर्थंकर हैं। इनका जन्म-स्थान हस्तिनापुर, पिता सूरराजा, माता श्रीदेवी थीं। जन्म वैशाख कृष्णा चतुर्दशी और निर्वाण वैशाख कृष्णा प्रतिपदा (एकम) को हुआ। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। भगवान् कुन्थुनाथ भारत के छठे चक्रवर्ती राजा भी थे। १८. अरनाथ 'भगवान् अरनाथ अठारहवें तीर्थंकर हैं। जन्म-स्थान हस्तिनागपुर, पिता सुदर्शवराजा और माता श्रीदेवी। आपका जन्म मार्गशीर्ष शुक्लादशमी और निर्वाण भी मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को ही हुआ। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। भगवान् अरनाथ भारत के सातवें चक्रवर्ती राजा भी थे। १६. मल्लिनाथ 'भगवान् मल्लि उन्नीसवें तीर्थंकर हैं। जन्म-स्थान मिथिला नगरी, पिता कुम्भ राजा और माता प्रभावतीदेवी। जन्म मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को और निर्वाण फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को सम्मेतशिखर पर हुआ। ये वर्तमान काल के चौबीस तीर्थंकरों में स्त्री-तीर्थंकर थे। इन्होंने विवाह नहीं किया, आजन्म ब्रह्मचारी रहे। स्त्री शरीर होते हुए भी इन्होंने बहुत व्यापक भ्रमण कर धर्म-प्रचार किया। चालीस हजार - - - - जैनत्व की प्रॉकी (52) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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