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यहाँ विस्तार में न जाकर संक्षेप में ही चौबीस तीर्थंकरों का परिचय दिया जाता है। १. ऋषभदेव - भगवान् ऋषभदेव पहले तीर्थंकर हैं । इनका जन्म उस प्राचीन आदि युग में हुआ, जब मनुष्य वृक्षों के नीचे रहते थे और वन-फल तथा कन्द-मूल खाकर जीवन-यापन करते थे। उनके पिता का नाम नाभिराजा और माता का नाम मरुदेवी था। उन्होंने युवावस्था में आर्य-सभ्यता की नींव डाली। पुरुषों को बहत्तर और स्त्रियों को चौसठ कलाएँ सिखाई। वे विवाहित हुए। बाद में राज्य त्यागकर दीक्षा ग्रहण की और कैवल्य पाया। भगवान् ऋषभदेव का जन्म, चैत्रकृष्णा अष्टमी को और निर्वाण (मोक्ष) माघकृष्णा त्रयोदशी को हुआ। उनकी निर्वाण-भूमि अष्टापद (कैलास) पर्वत है ऋग्वेद, विष्णु पुराण, अग्निपुराण, भागवत आदि वैदिक साहित्य में भी उनका गुण-कीर्तन किया गया
२. अजितनाथ
भगवान् अजितनाथ दूसरे तीर्थकर हैं। इनका जन्म अयोध्या नगरी में इक्ष्वाकुर्वशीय क्षत्रिया सम्राट जितशत्रु राजा के यहाँ हुआ। माता का नाम विजयादेवी था। भारतवर्ष के दूसरे चक्रवर्ती सगर इनके चाचा सुमित्रविजय के पुत्र थे। भगवान् अजितनाथ का जन्म माघशुक्ला अष्टमी को और निर्वाण चैत्रशुक्ला पंचमी को हुआ। उनकी निर्वाण-भूमि सम्मेतखिर है जो आजकल बिहार में पारस नाथ पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध है। ३. संभवनाथ
भगवान् संभवनाथ तीसरे तीर्थंकर हैं। इनका जन्म श्रावस्ती नगरी में हुआ। पिता का नाम इक्ष्वाकुवंशीय महाराजा जितारि और माता का नाम सेनादेवी था। इन्होंने पूर्वजन्म में विपुल वाहन राजा के
जैनत्व की झाँकी (48) Jain Education International
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