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जैनधर्म के चार महान् तीर्थंकरों के सम्बन्ध में आप पढ़ चुके हैं, किन्तु वर्तमान काल-चक्र में तीर्थंकर चार ही नहीं, चौबीस हुए हैं।
प्रस्तुत निबन्ध में आप पढ़िए तीर्थंकरों का स्वरुप और उनका परिचय।
जैनतीर्थकर
तीर्थंकर कौन होते हैं ? ___“तीर्थंकर" जैन साहित्य का एक मुख्य पारिभाषिक शब्द है। यह शब्द कितना पुराना है, इसके लिए इतिहास के फेर में पड़ने की जरुरत नहीं। आजकल का विकसित से विकसित इतिहास भी इसका प्रारम्भ काल पा सकने में असमर्थ है। और एक प्रकार से तो यह कहना चाहिए कि यह शब्द इतिहास की उपलब्ध सामग्री से है भी बहुत दूर परे की चीज।'
जैन धर्म के साथ उक्त शब्द का अभिन्न सम्बन्ध है। दोनों को दो अलग-अलग स्थानों में विभक्त करना, मानो दोनों के वास्तविक स्वरुप को ही विकृत कर देना है। जैनों की देखा-देखी यह शब्द अन्य पन्थों में भी कुछ-कुछ प्राचीन काल में व्यवहृत हुआ है, परन्तु वह सब नहीं के बराबर है। जैनों की तरह उनके यहाँ यह एक मात्र रुढ़ एवं उनका अपना निजी शब्द वन कर नहीं रह सका। तीर्थंकर की परिभाषा
हाँ, तो जैन धर्म में यह शब्द किस अर्थ में व्यवद्वत हुआ है और इसका क्या महत्व है, यह देख लेने की बात है। तीर्थंकर का शाब्दिक अर्थ होता है-तीर्थ का कर्ता अर्थात् बनाने वाला। 'तीर्थ' शब्द का जैन-परिभाषा के अनुसार मुख्य अर्थ है-धर्म । संसार समुद्र
1 देखिए बौद्ध साहित्य का 'लकावतार सूत्र'।
जैनत्व की झाँकी (38) Jain Education International
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