SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्वतोन्मुखी जीवन भगवान् महावीर के जीवन के सम्बन्ध में क्या कुछ कहा जाय । उनका जीवन एकमुखी नहीं, सर्वतोन्मुखी था । हम उन्हें किसी एक ही दिशा में बढ़ते नहीं पाते, प्रत्युत जिस क्षेत्र में भी देखते हैं, वे सबसे आगे और आगे दिखलाई देते हैं । आगम - साहित्य तथा तत्कालीन अन्य साहित्य पर दृष्टिपात कर जाइए। आप भगवान् महावीर को कहीं विलासी एवं अत्याचारी राजाओं को धर्म-परायण बनाते पाऐंगें, तो कहीं दीन दरिद्र गृहस्थों को पापाचार से बचाते पायेंगे। कहीं भिक्षुओं के लिए वैराग्य का समुद्र बहाते पाएँगें, तो कहीं गृहस्थों के लिए नीति- मूलक शिक्षाएँ देते पाएँगें, कहीं प्रौढ़ विद्वानों के साथ गम्भीर तत्व-चर्चा करते पाएँगें, तो कहीं साधारण जिज्ञासुओं को कथाओं के माध्यम से अति सरल धर्म-प्रवचन सुनाते पाएँगें । कहीं गणधर गौतम जैसे प्रिय शिष्यों पर प्रेम की अमृत वर्षा करते पाएँगें, तो कहीं उन्हीं को गलती कर देने के अपराध में स्पष्ट परिबोध भी सुनाते पाएँगें। बात यह है कि भगवान् को जहाँ कहीं भी, जिस किसी भी रुप में हम पाते हैं, सर्वथा अलौकिक एवं अद्भुत पाते हैं। भगवान् महावीर के महान् जीवन की झाँकी वर्णमाला के सीमित अक्षरों में नहीं दिखलाई जा सकती। भगवान् महावीर का जीवन न कभी पूरा लिखा गया है और न कभी लिखा जा सकेगा। अनन्त प्रकाश के गर्भ में असंख्य विहंगम उड़ानें भर चुके हैं, पर आकाश की इयत्ता का पता किसे है ? अतः यह प्रयास मात्र भगवान् के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करने और जिज्ञासुओं को उनके दिव्य एवं विराट् जीवन की केवल एक हल्की-सी झाँकी दिखाने के लिए है। Jain Education International For Private & Personal Use Only भगवान महावीर ( 37 ) www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy