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पड़े दिग्गज विद्वान् भी भगवान् के चरणों के पुजारी बन गए । इन्द्र-भूति गौतम जो अपने समय के एक धुरन्धर दार्शनिक, साथ-ही-साथ क्रेयाकाण्डी ब्राह्मण माने जाते थे, पावापुर में विशाल यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। भगवान् महावीर की पहली तत्व - चर्चा इन्हीं के साथ हुई । गौतम पर उनके दिव्य ज्ञान - प्रकाश एवं अखण्ड तपस्तेज का वह वेलक्षण प्रभाव पड़ा कि वे सदा के लिए यज्ञवाद का पक्ष त्याग कर भगवत्पद - कमलों में दीक्षित हो गये। इनके साथ ही चार हजार चार सौ ( 4400) अन्य ब्राह्मण विद्वानों ने भी भगवान् के पास मुनि दीक्षा धारण की। भगवान् के अहिंसा-धर्म की यह सबसे पहली विजय थी, जिसने भारत की चिरनिद्रित आँखें खोल दीं । उक्त घटना के बाद भगवान् महावीर जहाँ भी पधारे, धर्म-पिपासु जनता समुद्र की भाँति उनकी ओर उमड़ती चली गई।
भोग-विलास में सर्वथा और सतत लिप्त रहने वाले धनी नौजवानों पर भी प्रभू के अपूर्व वैराग्य का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं तथा सेठ साहूकारों के सुकुमार पुत्र भी भगवान् महावीर के चरणों में दीक्षित होकर तप तितिक्षा, त्याग और सदाचार का सन्देश लिये गाँव-गाँव घुमने लगे। मगध सम्राट् श्रेणिक की उन महारानियों को, जो कभी पुष्पशैय्या से नीचे पैर तक न रखती थीं, जब हम भिक्षुणियों के रुप में साधारण घरों से भिक्षा माँगते हुए और जनता को धर्म-शिक्षा देते हुए, कल्पना के चित्र-पट पर लाते हैं, तो हमारा हृदय सहसा हर्ष से गद् गद् हो उठता है । राजगृह के धन्ना और शालिभद्र जैन धन-कुवेरों के जीवन परिवर्तन की कथाएँ कट्टर से कट्टर भोगवादी के हृदय को भी परिवर्तित कर देने वाली हैं। नारीजाति के उद्धारक
भगवान् महावीर मातृ-जाति के प्रति भी बड़े उदार विचार रखते । उनका कहना था कि "पुरुष के समान ही स्त्री को भी प्रत्येक धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्र में बराबर का अधिकार है । स्त्री जाति को T
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