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________________ क्या इस युग में भारत का कोई उद्धार-कर्ता नहीं हुआ ? क्या उस समय इन विचारमूढ़ लोगों को समझाने-बुझाने वाला कोई उपदेश नहीं मिला ? क्या अन्ध-विश्वास की इस प्रगाढ़ अन्धकारपूर्ण काल-रात्रि में ज्ञान-सूर्य का उज्जवल आलोक फैलाने वाला कोई महापुरुष अवतरित नहीं हुआ ? अवश्य हुआ। कौन ? भगवान् महावीर। यह प्रकृति का अटल नियम है कि जब अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है, अधर्म धर्म का मोहक बाना पहनकर जनता को भ्रम- बन्धन में बाँध लेता है, तब कोई-न-कोई महापुरुष, समाज, राष्ट्र एवं विश्व का उद्धार करने के लिए जन्म लेता ही है। भारतवर्ष की तत्कालीन दयनीय दशा भी किसी महापुरुष के अवतरण की प्रतीक्षा कर रही थी। अतः भगवान् महावीर ने भारत के उद्धार के लिए तत्कालीन विदेह और आज के बिहार प्रदेशवर्ती वैशाली महानगरी के उपनगर क्षत्रियकुण्ड में, ज्ञातक्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ जन्म ग्रहण किया। भारत के इतिहास में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी का वह पवित्र दिन है, जो चिरकाल तथा जनमान में अविस्मरणीय बना रहेगा। भगवान् महावीर के जन्मदिन होने का सौभाग्य इसी पवित्र दिन को प्राप्त हुआ था। साधना-पथ पर ! महावीर राजकुमार थे। सब प्रकार का सांसारिक सुख-वैभव चारों ओर बिखरा पड़ा था। विवाह हो चुका था। अपने समय की अनुपम सुन्दरी राजकुमारी यशोदा धर्म-पत्नी के रुप में प्रेम-पुजारिणी बनी हुई थी। दुःख क्या होता है ? कुछ भी पता न था। यह सब कुछ था। परन्तु महावीर का हृदय भी कुछ अनमना-सा उदास-सा रहता था। भारत का धार्मिक तथा सामाजिक पतन उन्हें बेचैन किए हुए था। जैनत्व की झाँकी (32) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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