________________
करुणा उमड़ पड़ी
“यह क्या ? इस उत्सव के समय में यह करुण-क्रन्दन क्यों ? खुशी के समय में आर्त स्वर कैसा ? -अरिष्टनेमि ने चौंककर इधर-उधर देखा।
राजकुमार का रथ थोड़ा और आगे बढ़ा, तो एक भयंकर दृश्य उनकी नजरों में कोंध गया। सैंकड़ों निरीह मूक पशु छट-पटा रहे हैं तथा एक बाड़े में बँधे आर्त-क्रन्दन कर रहे हैं। मौत जैसे उनके सामने खड़ी है और वे सब भयाकुल हैं। ___अरिष्टनेमि ने सारथी से रथ रोकने को कहा, और पूछा-"ये मूक . पशु यहाँ किस लिए बाँधे गये हैं ? ये क्यों छटपटा कर क्रन्दन कर रहे हैं ?
सारथि ने स्पष्ट निवेदन किया-"राजकुमार ! ये सब आपके विवाहोत्सव के लिए हैं ! बरातियों में बहुत-से राजा मांसाहारी भी हैं, उनके भोजन समारंभ के लिए इन पशुओं का वध किया जायेगा। ___ नेमिकुमार के हृदय में भयंकर चोट लगी। “मेरे विवाह में यह नृशंस हत्या ! मेरा एक घर बसाने के लिए हजारों पशुओं की मृत्यु ! नहीं ! नही ! यह नहीं हो सकता। नेमिकुमार के हृदय में करुणा का स्रोत उमड़ पड़ा। उन्होंने करुणाविगलित हृदय से कहा-“सारथि ! रथ को मोड़ लो ! यह विवाह नहीं होगा। जाओ, पशुओं को तत्काल बन्धन-मुक्त कर दो। सारथि ने आज्ञानुसार बाड़ा खोल दिया, सब पशु बन्धन-मुक्त कर दिये गये।
नेमिकुमार का रथ तोरण से वापस लौट गया। चारों ओर चिन्ता छा गई ? श्रीकृष्ण आदि ने नेमिकुमार को बहुत समझाया, पर उन्होंने सबके प्रस्ताव अस्वीकार कर दिये। उनके हृदय की करुणा दीप्त हो उठी। वे लौटकर राजमहलों में नही गये, सीधे रैवताचल गिरनार पर्वत की गहन कन्दराओं में जाकर आत्म-साधना में लीन हो गये।
-
-
-
-
-
. जैनत्व की झांकी (24) Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org