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उन्होंने तपस्या करके आत्म-शोधन किया। कर्म-मलों का नाश किया और केवलज्ञान प्राप्त करके बाईसवें नेमिनाथ के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुए। हिंसा के उपदेष्टा ___करुणामूर्ति भगवान नेमिनाथ ने अहिंसा और करुणा पर बहुत अधिक बल दिया। खासकर भोजनशुद्धि के साथ अहिसा का सम्बन्ध जोड़ने वाले यही इतिहास-पुरुष हैं। वासुदेव श्रीकृष्ण और यादव-जाति को उन्होंने विशेष रुप से अहिंसा के उपदेश द्वारा प्रभावित किया। छांदोग्य उपनिषद् में लिखा है कि “देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को घोर आंगिरस ऋषि ने अहिंसा धर्म का उपदेश दिया था। बौद्ध-दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान स्व. धर्मानन्द कौशाम्बी (भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ. ३८) के मतानुसार वे अहिंसा धर्म के उपदेशक जैन तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ ही थे, जो वैदिक-परम्परा में 'चोर आंगिरस' के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं।
जैन-साहित्य के आधार से भी इतना तो निश्चित है कि भगवान् नेमिनाथ यादव जाति एंव श्रीकृष्ण के उपदेशक थे। उन्होंने समय-समय पर वासुदेव श्रीकृष्ण जैसे सम्राटों और सर्व-साधारण जनता को अहिंसा का उपदेश देकर भारतवर्ष में दया और करुणा का प्रचार किया। इतिहास की नवीन खोज अब भगवान् नेमिनाथ को ऐतिहासिक महापुरुष मान चुकी है।
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