SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूल्हा बनकर चले तत्कालीन भारत का क्रूर शासक मगध नरेश जरासन्ध यादव-जाति के पराक्रम और वैभव से जलकर उस पर तरह-तरह के अत्याचार ढा रहा था । श्रीकृष्ण ने इस आपत्ति से अपनी जाति को बचाने के लिए वहाँ से प्रस्थान करके पश्चिम समुद्र के किनारे सौराष्ट्र प्रदेश में द्वारका नगरी बसाई और वहीं पर समस्त यादव-जाति वासुदेव श्रीकृष्ण के नेतृत्व में अपनी उन्नति करने लगी । अरिष्टनेमि जब युवा हुए तो उनका पराक्रम और तेजस् पूरी यादव - जति में अद्भुत दिखाई देने लगा। श्रीकृष्ण अरिष्टनेमि का बहुत सम्मान करते थे। अरिष्टनेमि का स्वभाव बड़ा ही शांत, मधुर और कोमल था । उनके मन में वैराग्य के संस्कार जमे हुए थे, इसलिए वे संसार से उदासीन एवं विरक्त से रहते । श्रीकृष्ण ने बहुत ही आग्रह करके अरिष्टनेमि को विवाह के लिए तैयार किया। उनका सम्बन्ध उग्रसेन की पुत्री राजीमती से निश्चित हुआ । राजीमती बहुत ही सुन्दर और चतुर राजकुमारी थी। उसके स्नेहित और हँसमुख स्वभाव पर हर कोई मुग्ध हो उठता । परिवार में उसे प्यार से राजुल नाम से पुकारा जाता था । अरिष्टनेमि की बारात राजीमती को ब्याहने के लिए राजा उग्रसेन के द्वार पर जा रही थी। राजकुमार रथ में बैठे थे। एक ओर भारत के सम्राट श्रीकृष्ण, अनेकों तेजस्वी नरेश एवं यादव - राजकुमारों का दल-बल था, तो दूसरी ओर उनके स्वागत के लिए भोजवंशी राजा उग्रसेन अपने मित्र राजा एवं सामन्तों तथा पारिवारिक जनों के साथ उपस्थित थे। चारों ओर मंगल गीत गाये जा रहे थे, मधुर संगीत की लहरें दूर-दूर तक पवन पर तैरती जा रही थीं, स्थान-स्थान पर वंदनवारें टंगी थीं, सौभाग्यवती नारियाँ अरिष्टनेमि पर सुगन्धित पुष्प - वर्षा कर रही थीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only भगवान नेमीनाथ (23) www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy